मंगलवार, 13 नवंबर 2018

क्रांति का ये नया अंदाज होगा

ये देश जागीर है किसकी
जनता की ,सत्ता की
या पूंजीपति नौकरशाहो की
तय होना अभी भी बाकी
बहाता है किसान पसीना
और
मोटा हों जाता है बनिया
उसके श्रम पर
व्यापारी और बिचौलिया
बहाता है मजदूर पसीना
और
तिजोरी भरती इनकी
सीमा पर मरता जवान है
और
सीना नेता का नपता है
नेता नेता सब जपता है
आखिर कौन है मुल्क का मालिक
ये सब
या
फिर सब ,सारी जनता
क्यों नहीं मिलता सबको सबका
वाजिब हक
कब बदलेगी ये सड़ी व्यवस्था
और
सचमुच का लोकतंत्र मिलेगा
संभव बराबर सब होंगे जब
समान शिक्षा सबको मिलेगी
सामान चिकित्सा होगी सबको
और
सामान अवसर भी होगा तब
जरूरत है सम्पूर्ण क्रांति की
गाँधी के रस्ते पर चल कर
रक्तहीन हो पर समीचीन हो
फैसलाकुन क्रांति की
कब आएगी कौन करेगा
मैं निकलूं तुम भी निकलो
सबको ही हम साथ मिला
चलो हाथ से हाथ मिला ले
जो शोषक है मिलकर उनको
इस क्रांति का मर्म बता दे
हर अंतिम का दर्द दिखा दे
शायद वो भी समझ ही जाये
वो भी हमसे हाथ मिलाये
वर्ना हमको तो उठना ही
हर अंतिम को तो जगना ही
मुट्ठी भींच अधिकार मांग लो
हो सबका ही प्यार मांग लो
वर्ना हक तो लेना ही है
जिनके पास है देना ही है
पांच गाँव जब न देता हो
लड़कर अपना हिस्सा लेना
पर उसका उसको दे देना
नयी क्रांति का आगाज होगा
सबका अपना कल भी होगा
सबका अपना आज होगा
क्रांति का ये नया अंदाज होगा

गुरुवार, 8 नवंबर 2018

कृष्ण का गोवर्धन

कृष्ण ने उठाया था गोवर्धन
बचाने को उन लोगो को
जिनको खड़ा कर दिया था
सबसे बडी सत्ता के खिलाफ
बस यही तो कहा था कृष्ण ने
कि
उसे क्यो भोग लगाते हो
जो खाता ही नही है
जिसे भूख ही नही है
और
उदर भी नही है
केवल वास लेता है वो
उसे खिलाओ
जिसे भूख है
जिसे जरूरत है
लाओ मुझे खिलाओ
मैं खाऊंगा
कितना कमजोर था देवत्व
की
तुरन्त हिल जाता था उनका आसन
और
कितना क्रोध भरा था इनमें
कैसे और क्यो देवता माने इन्हें
जो सहज इंसान भी नही
बरसा दिया क्रोध
उन सभी पंर
जिन्हें खड़ा किया था कृष्ण ने
सत्य के साथ
पर
कृष्ण भी तो कृष्ण थे
प्रेम किया तो खूब किया
राजनीति किया तो खूब किया
युध्द भी खूब करवाया
खूब मरवाया
और
खूब बचाया
खड़े हो गए यहाँ भी कृष्ण
अपनो के साथ
और
उठा लिया गोवर्धन
अपनी छोटी सी उंगली पर
वो छोटी सी उंगली
और
उतना बड़ा पहाड़
कैसे टिक पाया होगा
और
कैसे उठाया होगा
कितनी दुखी होगी
उनकी उंगली
शायद आज भी दर्द
हो रही वो उंगली
पर
असम्भव को संभव करने का नाम
ही
कृष्ण है शायद
लगता है
की वो पहाड़ नही
बल्कि पुरुसार्थ रहा होगा
संकल्प रहा होगा
इरादा रहा होगा
और
अडिगता रही होगी
और
आंख में आंख डाल कर
खड़े हो गए होंगे कृष्ण
सबसे आगे
उंगली उठाकर चुनौती देते हुए
और
उनके संकल्प के सामने
नही टिक पाया होगा
इतना उथला से इंद्र
और
भाग खड़ा हुआ होगा
खूब तालियां बजी होंगी
नाचे होंगे लोग
कृष्ण को उठा कर कंधे पर
गोपिया रीझ गयी होंगी कितनी
और
देख रही होंगी कनंखियो से
कृष्ण को
कृष्ण ने भी जरूर देखा होगा
अठखेलियाँ
और
मंद मंद मुस्कराए होंगे कृष्ण
पर
कृष तुम कितने लंबे विश्राम पर हो
या
अपने गुण , अपनी जिम्मेदारी
भूल गयो हो
देखो
कितने नकली देव
क्या क्या जुल्म कर रहे है
तुम्हारे लोगों पर
तुम्हारी गोपिकाओं
तुम्हारे बच्चो से
क्या क्या सलूक हो रहा है कृष्ण
तुम इतने बेदर्द तो नही हो सकते
की
लोगो का दर्द ही भूल जाओ
आ जाओ न कृष्ण
भारत ही नही दुनिया को
एक और महाभारत की जरूरत है
और
जरूरत हैं
आज के संदर्भ में
एक नए ज्ञान और उपदेश की
कब आवोगे कृष्ण
और
ये महापर्वत कब उठावोगे
अपने इरादे और न्याय की
उंगली पर ।
आओ न कृष्ण , अब उठ जाओ
आ भी जाओ न कृष्ण ।

मंगलवार, 6 नवंबर 2018

दो तरह की दीपावली

लोग कल रात दिए
और 

मोमबत्तियां जलाएंगे 

पटाके भी चलाएंगे
और
कुछ बच्चे
परसो सुबह उठ कर
बची मोबत्तियाँ , दिए
और
बिना जले पटाके बीनेगे
जहाँ काम करते होंगे
उनके माँ बाप
उनको वहाँ से मिलेगा
खील बतासा मिठाईयां 

कपड़े 

और
इनाम में कुछ पैसे भी
मालिक के 

दिल के बड़प्पन के अनुसार
और
दीपावली के अगले दिन होगी
एक बड़ी आबादी की दीवाली
कल तो
ये बच्चे
बस टुकुर टुकुर ताकेंगे
किसी 

दूसरी दुनिया के लोगो 

का वैभव
उनके घरो का उजाला
उनकी धमक 

और पटाको कि चमक
उनके घर आते जाते डिब्बे
और सूंघेगे 
उनके घर की 

रसोई से निकलती
पकवानों की खुशबू
जो उसकी दुनिया मे 

नही होती ।
और
बीत जाएगी दीपावली
दो दुनिया एक बार 

फिर स्थापित कर
और
सब का उत्थान
और
संघर्ष भुला देगा
कि
कल क्या हुआ था ।
यही समाज की 

बनावटी सतत यात्रा हैं
जिसमें 

बहा जा रहा है समाज
न जाने कितनी सदियों से
क्या कभी दूरी मिट पाएगी
ये दो दिन की
और
दो तरह की दीपवाली की ?