ये देश जागीर है किसकी
जनता की ,सत्ता की
या पूंजीपति नौकरशाहो की
तय होना अभी भी बाकी
बहाता है किसान पसीना
और
मोटा हों जाता है बनिया
उसके श्रम पर
व्यापारी और बिचौलिया
बहाता है मजदूर पसीना
और
तिजोरी भरती इनकी
सीमा पर मरता जवान है
और
सीना नेता का नपता है
नेता नेता सब जपता है
आखिर कौन है मुल्क का मालिक
ये सब
या
फिर सब ,सारी जनता
क्यों नहीं मिलता सबको सबका
वाजिब हक
कब बदलेगी ये सड़ी व्यवस्था
और
सचमुच का लोकतंत्र मिलेगा
संभव बराबर सब होंगे जब
समान शिक्षा सबको मिलेगी
सामान चिकित्सा होगी सबको
और
सामान अवसर भी होगा तब
जरूरत है सम्पूर्ण क्रांति की
गाँधी के रस्ते पर चल कर
रक्तहीन हो पर समीचीन हो
फैसलाकुन क्रांति की
कब आएगी कौन करेगा
मैं निकलूं तुम भी निकलो
सबको ही हम साथ मिला
चलो हाथ से हाथ मिला ले
जो शोषक है मिलकर उनको
इस क्रांति का मर्म बता दे
हर अंतिम का दर्द दिखा दे
शायद वो भी समझ ही जाये
वो भी हमसे हाथ मिलाये
वर्ना हमको तो उठना ही
हर अंतिम को तो जगना ही
मुट्ठी भींच अधिकार मांग लो
हो सबका ही प्यार मांग लो
वर्ना हक तो लेना ही है
जिनके पास है देना ही है
पांच गाँव जब न देता हो
लड़कर अपना हिस्सा लेना
पर उसका उसको दे देना
नयी क्रांति का आगाज होगा
सबका अपना कल भी होगा
सबका अपना आज होगा
क्रांति का ये नया अंदाज होगा
पहचान उन सभी का मंच है जो जिंदगी को जीते नहीं जीने का निर्वाह करते है .वे उन लोगो में नहीं है जिन्हें जीवन मिला है या जीने का मकसद उनके साथ रहता है .बस जीने और घिसटने के बीच दिल वालो की कलम से और दिल से जो निकल जाता है वही कविता है .पहली कविता भी तों आंसू से निकली थी .आंसू अपने दर्द के हो या समाज के ,वे निकलेंगे तों कविता भी निकलेगी और वही दिलवालो की ;पहचान ;है
मंगलवार, 13 नवंबर 2018
क्रांति का ये नया अंदाज होगा
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