रविवार, 31 मई 2015

उदासी

बहुत उदास है दिन
राते तो उदास ही है
काफी दिनों से
पर आगोश में नीद के
उदासी खो जाती है कही
पर दिन की उदासियाँ
और एकाकीपन
इनसे जूझना नहीं आता
अपने से भाग जाने की
कला नहीं सीख पाया मैं
अभिमन्यु की तरह
एक कला से महरूम
रह गया मैं भी
वो चक्रव्यूह तोड़ने को
था आतुर
और मैं तलाश रहा हूँ
कोई चक्रव्यूह
जिसमें एकाकीपन और
उदासी का एहसास न हो ।

सोमवार, 18 मई 2015

पहले हमसे यारी कर

पहले हमसे  यारी कर
मिल कर के गद्दारी कर
मैं  हारूं और  जीते  तू
ऐसी साज़िश भारी कर ।

मेरी आवाज में छिपी हुयी सिसकियाँ

लोगो को  मेरा मुस्कराता हुआ
चेहरा तो दीखता है
मेरी आत्मविश्वास भरी
और खनकती हुई
आवाज सुनाई पड़ती है
पर नहीं दिखलाई पड़ते है
आँखों की कोरो में फंसे हुए
खून के आंसू
और नहीं सुनाई पड़ती है
मेरी आवाज में
छिपी हुयी सिसकियाँ
सच है
जब तक आँखों से
अंगारे नहीं बरसते
और आवाज से
इन्कलाब  उठान नहीं लेता
कोई नहीं देख पाता है
और न सुन ही पाता है
किसी का दर्द और आंसू ।
इन्तजार कीजिये
बहरे कानो में सुनाई पड़ेगी गूँज
और उनकी आँखे भी देखने लगेगी
जो छुपा हुआ है अब तक वो भी ।

आप ने कभी कोई बाँध टूटता हुआ देखा है

आप ने कभी
कोई बाँध टूटता हुआ देखा है
शायद हाँ भी और ना भी
वैसे ही
कभी कभी फुट पड़ता है
इंसान पूरे वेग से
और बह जाता है
वर्षो से रुका हुआ पानी
और फिर
छा जाता है गहन सन्नाटा ।