बुधवार, 28 जून 2023

रोटियों में आग है और आग से है रोटियां



रोटियों में आग है और आग से है रोटियां 
आग में ही जल रही है ढेर सारी बोटियाँ 
बोटियों और रोटियों की ये लड़ाई आम है 
इस लड़ाई में राजनीती चलती है गोटियाँ ।
पेट में जब आग हो तो काम आये रोटियां 
दिल में जब आग हो तो जल जाएँ बोटियाँ ।
क्रांति क्रांति का घोष गूंजता जब जनता में 
ना रहती है रोटियां और न रहती है बोटियाँ ।

रविवार, 25 जून 2023

राम तुम मत आना

राम तुम मत आना

उन्होने कहा 
जय श्रीराम बोल
वो बोला 
जय श्रीराम 
उन्होने कहा 
हनुमान की जय बोल 
वो बोला 
हनुमान की जय 
वो जो कहते रहे 
वो बोलता रहा 
वो बोलता रहा
जय श्रीराम 
और 
हनुमान की जय 
और 
राम के भक्त 
उसे 
लगातार पीटते रहे 
जब तक 
वो बोलता रहा 
कितना दर्द हुआ होगा न
जब 
इतने लोगो ने 
इतने घंटो तक 
मारा होगा उसे 
क्या दर्द का 
बिल्कुल भी एहसास 
नही हुआ होगा 
उन लोगो को 
जो खुद को 
हिन्दू कहते है 
क्या सचमुच 
ये लोग हिन्दू है 
हिन्दू तो चींटी को 
बचा कर चलता है 
की 
कही मर न जाये 
ये कौन से हिन्दू है 
अब वो अब 
सांस ही नही ले रहा था 
तो 
उन्होने भी 
बोलना बन्द कर दिया 
जय श्रीराम 
और 
हनुमान की जय 
वो तो 
बोलने लायक ही नही बचा था 
भाग खड़े हुये 
राम का नाम लेकर 
वध करने वाले 
हा वध शब्द का ही 
प्रयोग किया था 
गांधी को मारने वालो ने 
और 
गोली खाकर 
गांधी ने भी तो कहा था 
हे राम हे राम 
नही 
ये अब हे राम नही 
बल्कि 
जय श्रीराम बोलते है 
ताकी कही गांधी के 
अनुयायी न कहलाये 
पर 
वो तो 
भाग ही नही पाया  
बिन बुलायी मौत से 
जो 
उस राम के नाम से आई 
जिसने 
अधर्म को खत्म किया 
धर्म के लिए 
पर धर्म के नाम पर भी 
कभी अधर्म होगा 
कहा सोचा होगा 
राम ने
जीते राज 
उन्होने युद्द मे 
पर 
दे दिये 
वही के लोगो को 
राज पाने के लिए 
उनके नाम का उपयोग होगा 
कहा सोचा होगा 
राम ने 
अब उसकी विधवा 
जो अभी 
जल्दी ही 
ब्याही गयी थी
अहिल्या की तरह 
पत्थर बन गयी है 
की 
कौन होगा 
अब सहारा 
किसके साथ बीतेगा जीवन 
कितना चीखी होगी वो 
उसकी बेजान लाश देखकर 
कई बार तो 
बेहोश हो गयी होगी 
फिर पानी डाल कर 
उठाया गया होगा उसे 
वो फिर पछाड़ मार मार 
गिर जाती होगी 
क्या 
उसे मारने वालो ने 
ऐसे दृश्य नही देखा होगा 
अपने घरो पर 
और 
नही देखा होगा 
विधवा हुयी किसी 
बहन और बेटी को 
अचानक 
और बूढे हो गये मा बाप को 
बेसहारा हो गये 
अबोध बच्चो को 
क्या नही आते वो दृश्य 
कभी 
इन लोगो की आंखो मे 
राम को भी तो 
बाँट दिया इन लोगो ने 
जो 
उसके खाने मे 
आते ही नही 
कि 
उम्मीद करे की 
इस युग मे भी 
आयेंगे राम 
और 
उद्धार कर देंगे 
उसकी बुत बन गयी 
विधवा का ।
वैसे भी राम 
अब आते ही कहा है 
चाहे 
कितना भी अधर्म हो 
पर 
अब तो राम 
खुद ही खतरे मे है 
क्या पता 
कि 
वो पढाये पाठ 
सही और गलत का 
धर्म और अधर्म का 
और 
उनका नाम लेने वाले 
उन्हे ही राम विरोधी 
और
राष्ट्र विरोधी बता दे
और 
जय श्रीराम का नारा
लगाती हुयी भीड़  
राम का ही बध कर दे 
इसलिये राम !
तुम बिल्कुल मत आना 
अपने भक्तो वाले 
इस देश मे 
और इस युग मे ।

बुधवार, 21 जून 2023

मंगलवार, 20 जून 2023

औरत आदमी की सरहद

सरहदे तय कर दी घरों की
सरहदे तय कर दी देशों की 
पर सरहद नही तय कर पाए 
औरत और आदमी के रिश्तों की 
जब चाहा ,जहा चाहा 
तोड़ देते है सरहद और सीमाएं ।

शनिवार, 17 जून 2023

दुख भी कुछ होता है

घर की चारदीवारी मे 
कैद रहने पर 
लगता है कितना अकेलापन 
सडक पर निकल पडे  
तो  
दीखने और मिलने लगे 
हजारो लोग अपने ही ।
इसलिये तोड दी दीवार की सीमाये 
निकल पडे  
फिर 
सब जग अपना लगा
शामिल हो गये 
लोगो के दुख मे 
और सुख मे भी 
और 
भूल गये 
की 
दुख भी कुछ होता है

खुद को बूढा मानने से इनकार करिये ।

घर मे परिवार होता है 
तभी वो घर होता है 
वर्ना तो बेजान दीवारे है
जिनमे आप कैदी है 
पर 
घर मे कोई छोटा सा बच्चा हो 
और 
बन जाइये बच्चा उसके साथ 
वाह 
क्या जिंदगी हो जाती है 
फिर मिल जाती जिंदगी 
और 
बचपन पोंछ देता है सारे गम 
सारी तकलीफे , बीमारी और वेचारगी 
बन गया हूँ मैं बच्चा आजकल 
सचमुच खूब जी रहा हूँ मैं 
भरपूर जी रहा हूँ मैं 
चुरा लेना चाहता हूँ खुशिया 
और इसकी यादे 
अगली बार फिर मिलने तक के लिए ।
आह जिंदगी वाह जिंदगी ।
बच्चा बन कर देखिये 
बच्चो से प्यार करिये 
खुद को बूढा मानने से इनकार करिये ।

शुक्रवार, 16 जून 2023

लोकतंत्र का नपुंसक गुस्सा

मेरी कविता 

लोकतंत्र का नपुंसक गुस्सा  

हा 
मुझे बचपन से गुस्सा आता था 
किसी इंसान को अपशब्दों के साथ
जाति के  संबोधन से 
मुझे गुस्सा आता था 
शाहगंज से लखनऊ होते आगरा तक 
मैं ट्रेन के दरवाजे पर 
या बाथरूम के पास बैठ कर आता था 
की
भीड़ ज्यादा है तो  
ट्रेन में डिब्बे क्यो नही बढ़ते 
मुझे गुस्सा आता था जब कोई 
दूसरों के मैले को उठा कर 
सर पर लेकर जाता था 
गुस्सा आता था जब दूर से फेंक कर 
किसी को खाना दिया जाता था 
गुस्सा आता था 
जब सायकिल के हैंडिल पर 
दो बाल्टियां 
और 
पीछे कैरियर पर मटका रख 
दो मील दूर पानी लेने जाता था 
शहर में 
गुस्सा आता था 
जब गांव जाने के लिए 
मीलो सर पर बक्सा रख कर 
चलना पड़ता था अंधेरे ने 
गुस्सा आता था 
जब गांव में बिजली भी नही थी 
गुस्सा आता था 
जब पुलिस अंकल किसी को 
बिना कारण बांध कर ले जाते थे 
माँ बहन की गालियां देते हुए 
और 
न जाने कितनी बातो पर गुस्सा आता था 
पर किसी भी चीज को 
बदल सकने की ताकत नही थी 
इस बच्चे में 
उसके बाद भी 
बहुत गुस्सा आता रहा रोज रोज 
और आज भी गुस्सा खत्म नही हुआ 
रामपुर तिराहे पर गुस्सा हुआ था मैं 
हल्ला बोल पर भी गुस्सा दिखाया था 
पर खुद शिकार हो गया 
हर बात पर जिस पर 
जिंदा आदमी को गुस्सा आना चाहिए 
मुझे तो गुस्सा आता रहा 
और 
मैं दुश्मनो में शुमार हो गया 
मुझे निर्भया ,दादरी ,मुजफ्फरनगर 
और 
रंगारंग कार्यक्रम पर भी गुस्सा आया 
पर 
ताली पिटती भीड़ में 
खो गया मेरा गुस्सा 
और में भी खो गया साथ साथ 
पानी पीकर या पानी के बिना 
लोगो के मर जाने पर भी आया गुस्सा 
संसद हो या मुम्बई 
मेरा गुस्सा सड़क पर आया 
लॉटरी हो या शहादत 
सड़क पर फूटा गुस्सा 
वो खरीदने अथवा मारने की धमकी 
नही रोक सकी मेरे गुस्से को 
धक्के खाती जनता और कार्यकर्ता 
भी बने मेरे गुस्से के कारण 
मुझे आज भी गुस्सा आता है 
बार बार बदलते कपड़ो पर 
अन्य देशों में मेर देश की बुराई पर 
पिटती विदेश नीति 
और अर्थव्यवस्था पर 
रोज शहीद होते सैनिको पर 
कश्मीर ,अरुणाचल और नागालैंड पर 
रोज के बलात्कार पर 
रोहतक से छत्तीसगढ़ तक पर 
गुस्सा आया है सहारनपुर पर मथुरा पर 
इंच इंच में होते अपराध पर 
थाने से तहसील होते हुये 
आसमान तक के भ्रष्टाचार पर 
भाषणों के खेप पर 
आसमान छूती महंगाई पर 
न जाने कितनी चीजे है 
गुस्सा होने को 
पर अब 
में देशद्रोही करार कर दिया जाता हूँ ।
और 
मेरा गुस्सा अपनी नपुंसकता 
और 
आवाज के दबने पर उफान मारता है 
पर 
मेरे छोटा हाथ , मेरा छोटा सा कद 
और साधारण आवाज 
सिमट जाती है कागज के पन्नो पर 
फेसबुक ट्विटर ,ब्लॉगर पर 
और दीवारों के बीच 
क्योकि इस देश मे गरीब के लिए 
गरीबी और बेकारी से लड़ने को भी 
धर्म या जाति की भीड़ चाहिए 
जो मेरे पास नही है 
और 
चाहिए धन काफी धन 
जो मंच सज़ा सके 
,रथ बना सके 
और मीडिया को बुला सके ।
जो मेरे पास नही है 
गुस्सा होकर बैठ जाता हूँ लिखने 
कोई कविता या कुछ विचार 
ताकि गुस्सा 
समय के थपेड़े में मर न जाये ।

मुनादी हो गयी है

मुनादी हो गयी है 

कि 
गाय अब हरगिज न पालें 
अगर पालते है तो सड़क पर 
हरगिज ना निकाले 
फिर भी निकले 
तो जिम्मेदारी आपकी है 
गाय पंर जो भी करेगे
हम करेंगे 
काटेगे या कही पंर बेच देगे
देश मे भी 
कौन खाये या न खाए 
चुनांव देखकर 
उसकी इजाजत हम ही देंगे

मुनादी हो गयी है 
कि 
प्यार पंर पाबंदियां है 
गर भाई और बहन हो 
या हो मियां और बीबी 
तो कागज ले के निकलो 
की दोनो सचमुच वही हो 

मुनादी हो गयी है 
कि 
लोकतंत्र की 
नई परिभाषा पढ़ लो
जान जाओ 
फिर उसी रस्ते पर बढ़ लो  
सत्ता पर कोई उंगली उठाये 
उससे पहले जरा ये जान जाए 
की 
जान का जोखिम बहुत है 
बन्दूक की नली से 
निकलती है सत्ता
ये तो पढ़ा था 
पर सत्ता बंदूक और 
हिंसा से है चलती 
ये भी पढ़ लो

मुनादी हो गयी है 
कि 
कोई अखबार हो या हो टी वी 
सब सत्ता की भाषा ही बोले 
किसी सिद्धांत के बहकावे में आये 
उससे पहले ज़रा ये जान जाए 
कि सत्ता चीज क्या है 
और 
सत्ता का संगठन चौकस खड़ा है 
कुछ भी हो जाए 
तो हमको क्या पता है
वो खुद ही जाने
या फिर बात माने 

मुनादी हो गयी है 
कि
क्या जरूरी है ये इतिहास पढ़ना 
इतिहास अबतक जो भी पढ़ा था 
सब कूड़े से भरा था 
जो हमको देश का दुश्मन बताता 
पढ़ना है तो राष्ट्र गौरव पढ़ो सब 
नया इतिहास 
जो अब हम समझा रहे है 
है वही इतिहास असली 
और 
इतिहासों के पुरोधा भी वही है 
जो जो हम बताए 
जो इनको अब नही मानेगा उसको 
रास्ते पर लाना भी आता हमे है
फिर काहे का गम  
गांधी से कलबुर्गी तक को 
समझा चुके हम 

मुनादी हो गयी है 
कि
ये आज़ादी बेवजह है 
और 
ऐसे लोकतंत्र का भी क्या करोगे 
ये चुनांव भी तो केवल खर्च ही है 
छोड़ो इसको बस हमे ही सत्ता दे दो 
जब तलक ये मुल्क जिंदा है 
और 
जिंदा है लोग कुछ भी 
फिर देखो हम क्या करेंगे 
पर ये अभी हम क्यो बताए 

मुनादी हो गयी है
किअपने मुह सिले सब 
और 
वो हो बोले जो हम बताए 
आंखे बंद कर ले 
और वो ही देखे 
जो हम दिखाए 
कानों में ठूस लो कुछ 
सुनना भी क्या जरूरी 
दिमागों पर भी कोई जोर क्यो दो 
बस उतना जानो 
जितना हम जनाये 

मुनादी हो गयी है 
कि अब सब मांन जाये 
कि सबके हम खुदा है 
सत्य है हम ,न्याय है हम
शास्वत भी हम ही है 

मुनादी हो गयी है 
कि 
अब कोई चित्र हो या बुत बनाये 
पर क्या बनाना है 
पहले हमको बताए 
जो हम कहे फिर वो ही बनाये

मुनादी हो गयी है 
कि 
बुध्द ने कुछ भी कहा हो 
पर 
संघम शरणं गच्छामि 
के अब नए मतलब समझ लो 
अब हम पर 
उंगली उठाना द्रोह होगा 
फिर नही कहना कि 
तुमने क्या है भोगा
मुनादी हो गयी है ।

गुरुवार, 15 जून 2023

आत्महत्या

आत्महत्या 

अच्छा चढ़ गए कुर्सी या स्टूल पर 
बाँध लिया पंखे मे रस्सी 
फिर थोडी दे रुके थे क्या 
पंखे मे रस्सी बाँधने से पहले ?
कुछ रुक कर सोचा क्या 
और जब बांधा था 
या गले मे डाली थी रस्सी 
तो आँखे नम थी क्या 
या बह रहा था पनाला आंखो से
फिर कैसे कसा होगा गले मे 
उस वक्त क्या था मन मे 
मां पिता भाई बहन कोई दोस्त 
या प्रेमिका या सिर्फ़ गुस्सा 
पर किससे ? खुद से या ?
पर एक पल भी नही आया ख्याल 
बहुत अपनो काया फिर अपना ?
बहुत नशे मे थे क्या 
की कुछ होश ही नही था 
या फिर मौत खुद नशा बन गई थी
उस पलायन के वक्त  
कसा था फंदा तो विचलित हुये क्या 
अच्छा सच सच बताओ 
अन्तिम विचार क्या आया था मन मे 
माँ की चीखे सुनाई पडी क्या 
और टूटा हुआ पिता और भी सब 
सचमुच वाले अपने 
अच्छा जब सरका दिया स्टूल 
और झूल गये पर मरे नही थे 
क्या तब मन मे आया 
काश अब बच जाते 
वो अन्तिम इच्छा क्या थी 
कायर कही के 
तुम पैदा ही क्यो हुये 
जब लड़ नही सकते थे 
जीवन के लिए जीवन से 
अपने पिता अपनी माँ 
और अपनो के लिए खुद से ।

बेटियाँ

बेटियाँ 

घर से जाते जाते भी 
पापा की           
कितनी चिंता करती है
बेटियाँ 
की 
क्या कहा रखा है ,
क्या क्या 
कैसे कैसे 
कर लीजियेगा ,
क्या खा लीजियेगा                
इत्यादि इत्यादि ।
मन और आंखे 
भिगो देती है बेटियाँ 
और 
खुद पर 
पता नही कैसे 
काबू रख पाती है 
बेटियाँ 
या फिर 
आंखे छुपा लेती है 
बेटियाँ ।

इस दौर मे कितने लोग थे हो गये

इस दौर मे कितने लोग 
थे हो गये 
कितने नंबर 
अब कभी नही मिलेंगे 
पर 
मिटाने की हिम्मत नही होती 
कि 
शायद फोन आ ही जाये 
कितनो से बात किया 
जो आखिरी थी 
कितनो को चाह कर भी
देख नही पाये 
कितनो को चाह कर भी
कन्धा नही दे पाये 
जी 
ये कहानी सिर्फ मेरी नही
घर घर की है 
जो फैली है
कन्याकुमारी से कश्मीर तक 
कैसे नाची मौत
और 
कितना लाचार कर दिया
मानवता को 
ना भगवान काम आये
ना अल्ला ना ईसा 
ना मंदिर काम आया 
ना मस्जिद ना कोई धर्म
फिर भी लड़े जा रहे है
सब उसके लिये 
जिसे किसी ने देखा नही
जो काम आया नही
इन्सान बन जाये तो
इंसानियत बचेगी 
और 
बचेगी शोध से
आविष्कारो से
और 
प्रकृति की रक्षा से 
इसलिए मानना है तो
प्रकृती को ईश्वर माने 
और 
इन्सान लड़ने के लिये नही 
प्रेम से रहने के लिये है 
ये बात जाने  ।

शुक्रवार, 9 जून 2023

इंसान से अच्छा तो कांच है

इंसान से अच्छा तो कांच है 
जब टूटता है 
तो आवाज तो आती है 
और 
उफ़ निकली है 
किसी की 
कोई दौड़ता है उधर 
कि क्या टूट गया 
आवाज तो थी 
पर किसके टूटने की 
और 
इंसान टूट जाता है 
बुरी तरह 
चूँकि कोई आवाज 
नहीं आती 
तो कोई नहीं दौड़ता 
उसकी तरफ 
उसका टूटना 
उसके चेहरे पर 
उभर आता है 
पर किसके पास है वक्त 
की चेहरे देखता रहे 
और 
रख दे पीठ पर हाथ सहारे को 
और 
सहला दे इतनी गहरी 
चोट को 
हा इंसान से अच्छा 
और 
खुशकिस्मत तो कांच है ।

शनिवार, 3 जून 2023

ये बारूद वाले किसान

मेरी कविता --

खेतो और बगीचो में 
बारूद बोने वाले 
ये नए किसान 
कहा से आ गए 
इन खेतो और बगीचो में 
यहाँ तो पैदा होती थी फसले 
और 
भरती थी पेट इन्सानों का 
और
होते थे फल मौसम के अनुसार 
और 
पेट भरने के साथ साथ
लड़ते थे इंसान में बीमारियो से 
पर ये पेट क्या पूरा शरीर 
उडा देने वाले 
और साँसे छीन लेने वाले 
मौत बाँटने वाले 
खेतिहर किसने पैदा कर दिया 
इसी समाज में और खेत में
रोकना ही होगा 
इन नए किसानो को 
और बचाना ही होगा
इंसानियत को 
चाहे उसके लिए 
बारूद से इन 
नए बारूद बोने वाले 
किसानो को ही 
क्यों न उड़ा दिया जाये 
इंसानियत बचाने को ।