गुरुवार, 15 जून 2023

इस दौर मे कितने लोग थे हो गये

इस दौर मे कितने लोग 
थे हो गये 
कितने नंबर 
अब कभी नही मिलेंगे 
पर 
मिटाने की हिम्मत नही होती 
कि 
शायद फोन आ ही जाये 
कितनो से बात किया 
जो आखिरी थी 
कितनो को चाह कर भी
देख नही पाये 
कितनो को चाह कर भी
कन्धा नही दे पाये 
जी 
ये कहानी सिर्फ मेरी नही
घर घर की है 
जो फैली है
कन्याकुमारी से कश्मीर तक 
कैसे नाची मौत
और 
कितना लाचार कर दिया
मानवता को 
ना भगवान काम आये
ना अल्ला ना ईसा 
ना मंदिर काम आया 
ना मस्जिद ना कोई धर्म
फिर भी लड़े जा रहे है
सब उसके लिये 
जिसे किसी ने देखा नही
जो काम आया नही
इन्सान बन जाये तो
इंसानियत बचेगी 
और 
बचेगी शोध से
आविष्कारो से
और 
प्रकृति की रक्षा से 
इसलिए मानना है तो
प्रकृती को ईश्वर माने 
और 
इन्सान लड़ने के लिये नही 
प्रेम से रहने के लिये है 
ये बात जाने  ।

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