बुधवार, 15 सितंबर 2021

यादो की कागजी नावें

जब और जितनी बार भी 
अपने घर लौटता हूँ 
और 
दरवाजा खोलता हूँ 
बिजली सी कौंध जाती है 
और 
दीवारो पर बन जाती है 
अंनगिनत तस्वीरें 
और 
मन का बादल बरस उठता है 
लहरो पर तैर जाती है 
यादो की कितनी कागजी नावें 
और कागज की नाव 
तो कागज की ही होती है 
खो जाती है अथाह पानी में 
और 
पसर जाता है सन्नाटा
दीवारो से छत तक 
और 
बैठक से बिस्तर तक ।

सोमवार, 6 सितंबर 2021

बहुत दिनो बाद आज

बहुत दिनो के बाद 
आज फिर उदासी ने घेर लिया 
बहुत दिनो के बाद 
आज अकेलेपन का एहसास हुआ  
बहुत दिनो के बाद 
आज मौन बहुत भारी है 
बहुत दिनो के बाद 
आज किताबे कितना काट रही है 
बहुत दिनो के बाद 
आज किबोर्ड पर उंगली सुन्न हुयी है 
बहुत दिनो के बाद 
आज आइना जैसे डर रहा है 
बहुत दिनो के बाद 
आज दीवारे कस कर बैठ गयी 
बहुत दिनो के बाद 
आज छत सर पर कितनी भारी है 
बहुत दिनो के बाद 
आज पौधे जलते से लगते है 
बहुत दिनो के बाद 
आज पांव घास मे झुलसे है 
बहुत दिनो के बाद 
आज खुद की लडाई खुद से है 
बहुत दिनो के बाद 
आज खुद से कितनी नफरत है 
पर जाये भी तो कहा कहा 
हर जगह यही सब होगा ना 
खालीपन बेबसी बेचारगी 
मरुस्थल का हिरन बन 
भागे भी तो कहा कहा 
संबल की प्यास लिये 
सब जगह बस बालू है 
झूठी सी आस लिये 
भागे भी तो कहा कहा 
बहुत दिनो के बाद 
आज बहुत अधीर हो 
थोडा सा रो लेगे 
बहुत दिनो के बाद आज 
थक कर कुछ सो लेंगे 
बस इस उम्मीद से कि
कल शायद अच्छा हो ।