बुधवार, 15 सितंबर 2021

यादो की कागजी नावें

जब और जितनी बार भी 
अपने घर लौटता हूँ 
और 
दरवाजा खोलता हूँ 
बिजली सी कौंध जाती है 
और 
दीवारो पर बन जाती है 
अंनगिनत तस्वीरें 
और 
मन का बादल बरस उठता है 
लहरो पर तैर जाती है 
यादो की कितनी कागजी नावें 
और कागज की नाव 
तो कागज की ही होती है 
खो जाती है अथाह पानी में 
और 
पसर जाता है सन्नाटा
दीवारो से छत तक 
और 
बैठक से बिस्तर तक ।

कोई टिप्पणी नहीं :

एक टिप्पणी भेजें