सोमवार, 29 अप्रैल 2024

दर्द है कि जाता ही नही

दर्द है कि जाता ही नही 
न मन का न तन का 
न अपनी जलन का 
न अपनी लगन का 
न अपने कहन का 
न उनके सुनन का 
न उनके कहन का 
न अपने सुनन का 
न दिल की व्यथा का 
न अपनी कथा का 
न यादो का अपने 
न वादो का अपने 
इरादो का अपने 
दवा भी नही है 
दुवा भी नही है 
ये किससे बताये 
किसे हम सुनाये 
आँसू छुपाये 
या हिचकी दबाए 
कटी जीभ अपनी 
निकलता जो खू है 
ये कैसे छुपाये 
न आहो मे कोई 
न चाहो मे कोई 
निगाहो मे कोई 
न राहो मे कोई 
ये गम हम दबाए 
कहा तक अब जाये 
ये दर्द जो खू मे 
कतरे कतरे लहू मे 
है चमड़ी के अंदर 
औ चमड़ी के बाहर 
ये जाता नही है ।

शुक्रवार, 26 अप्रैल 2024

गहन सन्नाटा ।



क्या वक्त है 
चारो तरफ 
या तो सन्नाटा है 
या 
सन्नाटा टूटता है 
तो 
आर्द्र स्वर मे जिंदगी
बचाने की आवाजो से 
और 
फिर गुस्से और चीखो से 
और 
फिर छा जाता है गहन सन्नाटा ।

सोमवार, 22 अप्रैल 2024

कभी समन्दर के किनारे खड़े होकर दूर देखा है आप ने

समय हो तो मेरी ये कविता भी पढिये --

कभी 
समन्दर के किनारे 
खड़े होकर 
दूर देखा है आप ने 
लगता है कि 
कुछ ही दूर पर 
आसमान मिल रहा है 
समन्दर से 
पर जब आगे बढ़ते है 
नाव से या जहाज से 
तो वो मिलन 
और दूर चला जाता है 
वैसी ही होती है 
कुछ जिंदगियां 
और कुछ के भविष्य 
इच्छाये ,खुशियाँ और आशाएं ।
मैं भी 
ताक रहा हूँ टुकुर टुकुर 
दूर से दूर तक 
बहुत दिनों से 
और भाग रहा हूँ लगातार 
की आसमान को छू लूँ  ।
पर
या तो आसमान छल करता है 
या 
मेरा पुरुषार्थ ही जवाब दे जाता है 
और
हाथ भी तो छोटे पड़ जाते है मेरे ।

गुरुवार, 18 अप्रैल 2024

चलो धूल डालते है कुछ विचारो पर

चलो धूल डालते है 
कुछ विचारो पर 
भावनाओ पर 
रिश्तों पर 
और ढक देते है 
बहुत सी यादे ।
भूल जाते है वो कदम 
जो हम साथ चले थे 
लिखते है नयी इबारत 
और नया मुस्तक़बिल ।

सुनो सुनो सुनो फरमान है राजा का

सुनो सुनो सुनो 
फरमान है राजा का 
या धर्म की जुबान है 
चार बच्चे पैदा हो 
ऐसा फरमान है 
दो एक के लिये 
दो दूसरे के लिये 
अपने लिये घन्टा 
सुनो सुनो सुनो 
मुनादी करा दो 
कि जरूरत है 
बच्चा पैदा करने वाली
मशीन की  
सुनो सुनो सुनो ।

मंगलवार, 9 अप्रैल 2024

बहुत हुआ पृथ्वी पर जय श्री राम जय श्री राम 
जहां भी राम सोयें थे वो जग कर बैठ गए 
झांक कर देखा ये कौन भक्त नए 
( आज पूरा करता हूँ )

रविवार, 7 अप्रैल 2024

अभिशप्त

अभिशप्त आत्माएं 
अभिशप्त वजूद 
अभिशप्त वादे 
अभिशप्त इरादे 
अभिशप्त इच्छाये 
अभिशप्त भविष्य
अभिशप्त रिश्ते
अभिशप्त भावनाए 
सपोले ही चहुँ ओर
आस्तीन कैसे बचाए
अभिशप्त सब कुछ 
ये सब 
जाकर किसे दिखाये ।

जीवन एक सवाल है और जवाब भी ।

ये सीधी सपाट सड़क बचपन है 
पहाड़ की चढ़ाई जवानी है 
और 
रेगिस्तान में चलना बुढ़ापा है 
इसी में कही नदी में तैरना 
समुद्र की लहरों से खेलना 
तारो को गिनना,चांद से बात करना 
फूलो को सूंघना पत्तो को सहलाना 
और बिला वजह दौड़ना 
तथा 
अनजाने गड्ढे में गिर जाना भी होता है ।
जीवन एक सवाल है और जवाब भी ।

शनिवार, 6 अप्रैल 2024

ऐसा क्यो होता है अक्सर

मेरी कविता:

ऐसा क्यो होता है अक्सर
कि 
जिस जमीन पर आप 
बुनियाद बनाना चाहते है 
वही दलदल निकल आती है 
और 
धंस जाता है खुद का वजूद 
जिस पेड़ को मजबूत समझ 
छप्पर का आधार बनाना चाहते है 
वही इतना कमजोर निकल जाता है 
कि 
तनिक सा बोझ पडते ही 
लचक जाता है 
और 
सब कुछ जमीदोज हो जाता है 
पहाडी पर चढ़ते वक्त 
पहला ही पत्थर 
कमजोर निकल जाता है 
और 
पहले ही कदम पर घायल कर 
चढाई छोड़ने को मजबूर कर देता है ।
खैर 
हिम्मत तब भी नही हारते लोग 
और 
जारी रखते है खोज 
एक मजबूत ,पुख्ता जमीन की 
पूरी तरह लम्बे समय तक 
मजबूती से खड़े रहने वाले पेड़ की 
और 
पहाडी पर घायल होकर भी 
अन्तिम चोटी तक पहुचने के 
सही मार्ग की ।

सोमवार, 1 अप्रैल 2024

हम तुम्हारे अहंकार को ठुकराते है ।

हम तुम्हारे अहंकार को ठुकराते है ।
तुम्हारे अहंकार में से कुछ नहीं चाहिए हमें ।
बल्कि हम दे देते है थोड़ी सी विनम्रता तुम्हे ।
और चाहो तो एक आइना भी ।

हम तुम्हारे अहंकार को ठुकराते है ।

हम तुम्हारे अहंकार को ठुकराते है ।
तुम्हारे अहंकार में से कुछ नहीं चाहिए हमें ।
बल्कि हम दे देते है थोड़ी सी विनम्रता तुम्हे ।
और चाहो तो एक आइना भी ।