मंगलवार, 11 जनवरी 2022

ये आदमी है या पिटठू ?

निकल पडते है 
सुबह ही पिटठू टागे 
न जाने कितने लोग 
कन्धे झुके पीठ झुकी 
चेहरा सपाट भावहीन 
पिटठू मे ही होता है 
उनका पूरा ऑफिस 
उनका टिफिन 
और पानी 
उनके अरमान
उनका भविष्य 
उनकी जवाबदेही 
घर से बाहर तक की
कही पैदल 
तो 
कही साइकिल पर 
कही बाइक पर 
तो कही बस मे 
कही लोकल मे 
कभी 
इन्हे गौर से निहारो 
क्या ये आप के अपनो जैसे ही है 
कभी 
इन्हे प्यार से पुकारो 
क्या ये सुन पाते है आवाज 
या बस भाग रहे है 
जिन्दगी की जद्दो-जहद मे 
मजदूर भी हंस लेता है पर ये नही 
मजदूर गा लेता है 
पर ये नही 
मजदूर अपने मन से भी जी लेता है 
पर ये नही 
कौन है ये लोग 
जिनकी पीठ पर 
लाद दिया है भारी बोझ 
नई अर्थव्यवस्था ने 
नई पढाई ने 
और 
आज के परिवारो ने 
बस किसी तरह 
इतना तो कमा लो 
कि 
शाम को लौट कर 
दो रोटी खिला दो 
और खुद भी खा लो 
इनकी पहचान क्या है 
ये आदमी है या पिटठू ? 

मर जाने का पर कुछ नही बताने का ।

ये नया फरमान है 
नये जमाने का 
कितना भी दर्द हो 
किसी को 
कुछ नही सुनाने का 
रख दे कोई गर्दन पर 
और 
कोई सीने पर पाँव 
फिर भी नही चिल्लाने का
ना दिल न भाव तुम पत्थर हो 
बस इतना समझं जाने का 
चाहे घुट कर मर जाने का 
पर हरगिज़ नही बताने का ।

कन्धे पर बोझ

पीठ पर बोझ टाँगे 
वो भटकता है 
सुबह से शाम तक 
इस दरवाजे से 
उस दरवाजे तक 
लोगो की चीजे पहुचाते 
डांट खाते 
देर होने पर 
अपना पैसा कटवाते 
डांट खाता है 
घर वालो की भी 
देर हो जाने पर 
और उस दिन का 
घर का सामान नही लाने पर 
और पैसा कट गया 
किसी की शिकायत पर 
ये भी बताने पर 
सो जाता है 
पेट मे डांट पचा कर 
क्योकी 
कल सुबह फिर निकलना है 
कन्धे पर घर की
जिम्मेदारियो का बोझ लेकर ।

शनिवार, 8 जनवरी 2022

जाति का नशा

जाति का नशा -----

पहले मैं समझता था 
कि 
सबसे बड़ा नशा 
धर्म का होता है 
मैं गलत था 
जाति के नशे का 
कोई मुकाबला नही 
इस नशे में डाकुओ के 
गाने गाए जाते है
उसकी जाति की शादियों में 
उसी जाति के किसी शहीद
या 
महान साहित्यकार
अथवा वैज्ञानिक के प्रति 
ये दीवानगी नही देख पाएंगे आप 
पर ऐसी जातियाँ भी खास ही है ।