बुधवार, 29 अप्रैल 2020

ऊपर वाला

ये #ऊपर_वाला 
हमेशा से मुसीबतरहाहै
इन्सानो के लिए 
खासकर आम इन्सानो के लिए 
इतिहास उठा कर दे लो 
ये आम इन्सानो को 
सिर्फ कष्ट देता है 
और
खुद के लिए लेताहै
अच्छी अच्छी चीजे 
अभी भी जो आज है 
ये भी तो 
ऊपर वालो की देन है 
और 
नीचे वाले बदहाल है ।

जो रोज लिखते है

ये जो लोग 
रोज पढते है 
नई किताबे 
रोज लिखते है 
कोई कविता 
गजल या कहानी 
और 
नये नये किस्से भी 
कितने 
सुखी लोग है वो
कितने निश्चिंत 
कितने बेपरवाह 
और 
रच देते है 
रोज कुछ नया
पर 
जो खुद को ही 
जिन्दा रखने 
के जतन मे 
बिता देते है दिन 
वो जिन्दा है 
ये भी तो रचना है । 

जिंदगी का बोझ

बंद दरवाजो के पीछे 
छिपे होते है कितने राज 
कितनी सिसकिया 
और 
कितनी चीखे 
कुछ तो 
निकल ही नही पाती है 
बस घुट कर रह जाती है 
कहने को तो 
सब अपने ही होते है 
पर 
कुछ ऊर्जा देते है 
और 
देते है जीने की तमन्ना 
और 
कुछ गला घोट कर 
मार देते है 
या 
बना देते है मरने जैसा 
बाहर निकल कर 
कितना नकली हंसी                           हँसते है लोग 
और 
कितनी खोखली होती है                  उनकी मुस्कराहट 
दर असल इस हंसी मे
एक चीख होती है 
बहुत डरावनी सी             
और 
मुस्कराहट बिल्कुल वही              
जो 
फाँसी पर चढ़ने वाले के
चेहरे पर होती है 
रिश्ते भी कितने 
बोझिल हो जाते है 
जब कोई खुद को
बोझ बना लेता है 
अपने ही ऐतिहासिक
कामो से 
और 
फिर अपने ही वर्तमान से      
क्यो नही जीवन उतना ही हो 
की 
आप ऐश करे अपनी मर्जी का 
और 
फिर छोड दे शरीर 
उसके बाद जीवन का
मतलब भी क्या है 
जब तक आप जरूरी हो
दूनिया और समाज के लिए जिए 
या अपने लिए 
वर्ना क्यो शर्मिंदा हो रोज 
बेहतर है कि आप फिर चले ।

मंगलवार, 7 अप्रैल 2020

बादल छँट गए

सब बादल छँट गये 
सूरज निकल आया 
उनकी कैद से 
अब सब कुछ 
साफ साफ दिख रहा है 
गद्ढे भी ,पत्थर भी 
रस्ते भी और मंजिल भी ।

रविवार, 5 अप्रैल 2020

डमरू मदारी और बन्दर

डमरु मदारी और बंदर 
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इधर कुछ साल पहले तक
पता नहीं क्या हो गया 
कि
मदारी दिखने बंद हो गए थे 
क्या उनको नचाने को 
बंदर नहीं मिल रहे थे ?
या दर्शकों ने 
देखना बंद कर दिया था ?
अब समस्या दूर हो गयी है 
बंदर काफ़ी मिल गये है 
और 
दर्शक तो हमेशा से है ही 
जो तटस्थ है । 
बजा डमरु बजाओ ताली 
बंदरिया 
जी मालिक 
नाच दिखाएगी 
हा दिखाऊँगी 
क्या कह रही है 
पहले पैसे फेंको
अरे अब क्यों रुठी है 
पैसे कम आए 
मेहरबान और फेंको 
फिर तमाशा देखो 
डमरु बजने लगता है 
और 
अभ्यस्त बंदर बंदरिया 
खेला दोहराने लगते है 
वही पुराना वही बासी सा 
फिर भी 
डमरु की आवाज पर 
नाचना ही नियति है 
बंदरो  की आज तक ।