शुक्रवार, 30 अप्रैल 2021

बेहतर है क़ि आप फिर चले

बंद दरवाज़े के पीछे 
छिपे होते है कितने राज 
कितनी सिसकिया 
और 
कितनी चीखे 
कुछ तो 
निकल ही नही पाती है 
बस घुट कर रह जाती है 
कहने को तो 
सब अपने ही होते है 
पर 
कुछ ऊर्जा देते है 
और 
देते है जीने की तमन्ना 
और 
कुछ गला घोट कर 
मार देते है 
या 
बना देते है मरने जैसा 
बाहर निकल कर 
कितना नकली हंसी हँसते है लोग 
और 
कितनी खोखली होती है उनकी मुस्कराहट 
दर असल इस हंसी मे
एक चीख होती है 
बहुत डरावनी सी             
और 
मुस्कराहट बिल्कुल वही              
जो 
फाँसी पर चढ़ने वाले के
चेहरे पर होती है 
रिश्ते भी कितने 
बोझिल हो जाते है 
जब कोई खुद को
बोझ बना लेता है 
अपने ही ऐतिहासिक
कामो से 
और 
फिर अपने ही वर्तमान से      
क्यो नही जीवन उतना ही हो 
की 
आप ऐश करे अपनी मर्जी का 
और 
फिर छोड दे शरीर 
उसके बाद जीवन का
मतलब भी क्या है 
जब तक आप जरूरी हो
दूनिया और समाज के लिए जिए 
या अपने लिए 
वर्ना क्यो शर्मिंदा हो रोज 
बेहतर है कि आप फिर चले ।

रच देते है कविता

ये जो लोग 
रोज पढते है 
नई किताबे 
रोज लिखते है 
कोई कविता 
गजल या कहानी 
और 
नये नये किस्से भी 
कितने 
सुखी लोग है वो
कितने निश्चिंत 
कितने बेपरवाह 
और 
रच देते है 
रोज कुछ नया
पर 
जो खुद को ही 
जिन्दा रखने 
के जतन मे 
बिता देते है दिन 
वो जिन्दा है 
ये भी तो रचना है ।

रविवार, 25 अप्रैल 2021

प्रकृति ही ईश्वर

ईश्वर और कोई नहीं 
प्रकृति ही ईश्वर है 

हमने पत्थरों, पेड़ों और 
पशुओं की पूजा की 
जिससे हम डरे उसकी पूजा की  
बाद में लोगों को डराने के लिए 
गढ़ने लगे अपने-अपने ईश्वर 
वह बन गया हमारा हथियार 
अधिकार और व्यापार

कूटरचित माताओं और बाबाओं के 
वेश में फैल गया ईश्वर  
पाखंडियों ने स्वार्थ में 
गली-गली बैठा दिये ईश्वर 
धर्म के ठेकेदारों ने निकाल दिए रास्ते 
पाप करो और बहती गंगा में हाथ धो लो
बुरा करो और मानस-पाठ करा लो

कहते हैं पाप बढ़ेगा तो जन्म लेगा ईश्वर 
पर आज के पापियों से डरकर 
कहीं छिप गया है ईश्वर 

हमने काट डाले जंगल
कुपित है प्रकृति
मंदिर-मस्जिद छोड़ो
प्रकृति को बचाओ 
ईश्वर अल्ला से नाता तोड़ो 
बचने के ठिकाने बनाओ

बन सको तो भगीरथ बनो 
नदियों को बचाओ 
पहाड़ों, जंगलों को बचाओ
आओ, आक्सीजन बढ़ाओ
जानें बचाओ

सन्नाटा

क्या वक्त है 
चारो तरफ 
या तो सन्नाटा है 
या 
सन्नाटा टूटता है 
तो 
आर्द्र स्वर मे जिंदगी
बचाने की आवाजो से 
और 
फिर गुस्से और चीखो से 
और 
फिर छा जाता है 
गहन सन्नाटा ।

इश्वर क्या है

ईश्वर क्या है ? 
जो अज्ञात था है और रहेगा 
या 
प्रकृति ही ईश्वर है 
क्योंकि 
पत्थर पेड़ और 
विभिन्न पशु पक्षी को माना 
हमने ईश्वर ,
जो हमारा नुक़सान कर सका 
या 
जिससे हम डरे उसे माना ईश्वर 
फिर हम समझदार हो गए 
तो गढ़ने लगे ईश्वर के स्वरूप 
ईश्वर ने सब कुछ बनाया 
पर 
हम बनाने लगे अपने अपने ईश्वर 
ईश्वर एक डर है 
ईश्वर हमारा लालच है 
ईश्वर जीने की इच्छा है 
ईश्वर मौत का डर है 
ईश्वर हथियार बन गया हमारा 
ईश्वर व्यापार बन गया हमारा 
किसी ने नही देखा ईश्वर 
किसी से नही मिला ईश्वर 
पर 
डीह बाबा , सम्मो माई 
जियुतिया माई से लेकर 
संतोषी माता तक 
और 
साई बाबा से लेकर 
तमाम पत्थरों तक फैल गए ईश्वर 
फिर ईश्वर बनने का चस्का 
इंसानो में भी लग गया 
पहले सब डरते थे बुरा करने से 
जब ईश्वर अज्ञात था 
या 
उसके प्रतीक दुर्गम जगहों पर थे 
मनुष्य ने अपने स्वार्थ में गली गली 
चौराहे चौराहे पर बैठा दिया ईश्वर 
तो डर ही ख़त्म हो गया 
ईश्वर के ठेकेदारों ने निकाल दिए रास्ते 
हमेशा पाप और बुरा करो 
पर बीच बीच में कही नहा आओ 
पूजा करते रहो कराते रहो 
और जिसको जो ठीक लगे 
उस धर्म स्थान पर जाते रहो 
पाप धुल जाएगा 
और 
इस व्यवस्था से बढ़ने लगा पाप 
जब कोई एक रावण कंस जडीज था 
तो अवतार ले लेता था ईश्वर 
कहानिया तो यही बताती है 
पर जब बुरो की फ़ौज हो गयी 
तो 
अपने आसमान में छिप गया ईश्वर 
बेचारा किस किस से लड़े ईश्वर 
और 
किस शक्ल में आए दुनिया में 
कि लोग स्वीकार ले उसे ईश्वर 
क्योंकि 
इंसान ने गढ़ दिए है हज़ारो 
और 
ईश्वर से परिचय का दावा करने वाले 
ख़ुद भी बन बैठे है ईश्वर 
जिसे देखा ही नही 
उसे क्या मानना ईश्वर 
ओकसीजन आज ईश्वर है 
और 
उसके लिए पेड़ ईश्वर है 
पानी भी ईश्वर है 
जी हाँ प्रकृति ही ईश्वर है 
इसलिए मंदिर मस्जिद नही 
प्रकृति को बचाओ 
ईश्वर अल्ला जहाँ है वही रहने दो 
अपने बचने के ठिकाने बनाओ । 
ईश्वर कल्पना है 
उस पर कहानी और कविता खूब लिखो 
पर प्रकृति के साथ दिखो 
ईश्वर शक्ति है तो उससे डरो 
और कोई पाप मत करो 
ईश्वर के ईश्वर मत बनो 
बन सकते हो तो भागीरथ बानो 
नदियों को बचाओ 
देवस्थलो के बजाय 
जीवन स्थलो पर पैसा लगाओ 
देवस्थलों के बजाय पेड़ उगाओ
ईश्वर ख़ुश होगा और जीने देगा 
वरना एक दिन पानी भी नही पीने देगा ।

सन्नाटा

क्या वक्त है चारो तरफ या तो सन्नाटा है 
या सन्नाटा टूटता है तो आर्द्र स्वर मे जिंदगी बचाने की आवाजो से 
और 
फिर गुस्से और चीखो से 
और 
फिर छा जाता है गहन सन्नाटा ।

ईश्वर क्या है ?

ईश्वर क्या है ? जो अज्ञात है 
या प्रकृति ही ईश्वर है 
पत्थर पेड़ पक्षी को माना ईश्वर
जिससे डरे उसे माना ईश्वर
फिर हम समझदार हो गए 
तो खुद गढ़ने लगे ईश्वर
ईश्वर ने सब कुछ बनाया 
पर 
हम बनाने लगे अपने ईश्वर
जीने की इच्छा या मौत का डर है 
जो हथियार बन गया हमारा 
जो व्यापार बन गया हमारा 
किसी ने न देखा ना मिला ईश्वर 
पर डीह बाबा , सम्मो माई 
संतोषी माता से साई बाबा तक
तमाम पत्थरों मे फैल गया ईश्वर 
फिर इंसानो बनने लगे ईश्वर
पहले सब डरते थे बुरा करने से 
जब अज्ञात और दूर था ईश्वर
जबसे चौराहो पर आ गया ईश्वर 
तो डर ही ख़त्म हो गया 
निकाल दिये रास्ते पाप धोने के 
जब एक रावण कंस जडीज था 
तो अवतार लिया था ईश्वर ने 
पर अब इनकी फ़ौज हो गयी 
तो बेचारा किस किस से लड़े ईश्वर 
और किस शक्ल में आए दुनिया में 
कि लोग स्वीकार ले उसे ईश्वर 
क्योंकि इंसान ने गढ़ दिए है हज़ारो
हवा आज ईश्वर है उसके लिए पेड़
पानी भी,जी हाँ प्रकृति ही ईश्वर है 
मंदिर मस्जिद नही प्रकृति बचाओ 
ईश्वर अल्ला जहाँ है वही रहने दो 
अपने बचने के ठिकाने बनाओ । 
ईश्वर शक्ति है तो डरो पाप मत करो 
बन सकते हो तो भागीरथ बानो 
नदियो और जंगल को बचाओ 
देवस्थल नही जीवन स्थलो बनाओ 
देवस्थलों के बजाय पेड़ उगाओ
ईश्वर ख़ुश होगा और जीने देगा 
वरना एक दिन पानी भी नही पीने देगा ।

गुरुवार, 8 अप्रैल 2021

हमारा हुक्म है

हमारा हुक्म है कि 
घर से निकलना मना है 
कोरोना काट लेगा 
हुक्म है 
खिडकी दरवाजे बन्द रखो 
हुक्म की आज निकलो ,
यहा निकलो , वहा निकलो 
रैली हमारी , भाषण हमारा 
कोरोना से मुक्त है ये 
मगर बाकी जगह 
मुह भी खोला तो जेल होगी 
सूइयां सबके लगेगी 
फिर चाहे मरो चाहे जियो 
ये भगवान जाने 
पर कोरोना 
भगवान के बस का नही है 
उसका इलाज तो 
बस पुलिस के पास है 
खबरदार 
जो बाकी जगह बाहर भी निकले ।
हुक्म है कि हुक्मनामा पढते रहो 
हुक्म है कि हुक्म पर चलते रहो ।

माफ करता हूँ तुम्हे

हे 
चलो  
मैं 
तुम्हे 
माफ़ करता हूँ ।
ताकि 
तुम 
दगा दे सको 
और 
छल सको 
बहुतो को 
और 
इस्तेमाल कर 
मार सको 
पीठ में खंजर ।
पर 
तुम तो एक 
खंजर रखते हो 
पर
बहुत से धोखे 
और 
खंजर है 
तुम्हारे सामने भी 
आने वाले 
हम तो 
मजबूत हो चुके 
तुम्हारे घाव से 
पर 
तुम तो 
बहुत कमजोर हो 
अपनी 
कमजोरियों के कारण ।

बुधवार, 7 अप्रैल 2021

मंगलवार, 6 अप्रैल 2021

जारी रखते है खोज

ऐसा क्यो होता है अक्सर
कि 
जिस जमीन पर आप 
बुनियाद बनाना चाहते है 
वही दलदल निकल आती है 
और 
धंस जाता है खुद का वजूद 
जिस पेड़ को मजबूत समझ 
छप्पर का आधार बनाना चाहते है 
वही इतना कमजोर निकल जाता है 
कि 
तनिक सा बोझ पडते ही 
लचक जाता है 
और 
सब कुछ जमीदोज हो जाता है 
पहाडी पर चढ़ते वक्त 
पहला ही पत्थर 
कमजोर निकल जाता है 
और 
पहले ही कदम पर घायल कर 
चढाई छोड़ने को मजबूर कर देता है ।
खैर 
हिम्मत तब भी नही हारते लोग 
और 
जारी रखते है खोज 
एक मजबूत ,पुख्ता जमीन की 
पूरी तरह लम्बे समय तक 
मजबूती से खड़े रहने वाले पेड़ की 
और 
पहाडी पर घायल होकर भी 
अन्तिम चोटी तक पहुचने के 
सही मार्ग की ।

सोमवार, 5 अप्रैल 2021

डमरू मदारी और बन्दर

डमरु मदारी और बंदर 
—————————
इधर कुछ साल पहले तक
पता नहीं क्या हो गया 
कि
मदारी दिखने बंद हो गए थे 
क्या उनको नचाने को 
बंदर नहीं मिल रहे थे ?
या दर्शकों ने 
देखना बंद कर दिया था ?
अब समस्या दूर हो गयी है 
बंदर काफ़ी मिल गये है 
और 
दर्शक तो हमेशा से है ही 
जो तटस्थ है । 
बजा डमरु बजाओ ताली 
बंदरिया 
जी मालिक 
नाच दिखाएगी 
हा दिखाऊँगी 
क्या कह रही है 
पहले पैसे फेंको
अरे अब क्यों रुठी है 
पैसे कम आए 
मेहरबान और फेंको 
फिर तमाशा देखो 
डमरु बजने लगता है 
और 
अभ्यस्त बंदर बंदरिया 
खेला दोहराने लगते है 
वही पुराना वही बासी सा 
फिर भी 
डमरु की आवाज पर 
नाचना ही नियति है 
बंदरों का आज तक ।