क्या वक्त है चारो तरफ या तो सन्नाटा है
या सन्नाटा टूटता है तो आर्द्र स्वर मे जिंदगी बचाने की आवाजो से
और
फिर गुस्से और चीखो से
और
फिर छा जाता है गहन सन्नाटा ।
पहचान उन सभी का मंच है जो जिंदगी को जीते नहीं जीने का निर्वाह करते है .वे उन लोगो में नहीं है जिन्हें जीवन मिला है या जीने का मकसद उनके साथ रहता है .बस जीने और घिसटने के बीच दिल वालो की कलम से और दिल से जो निकल जाता है वही कविता है .पहली कविता भी तों आंसू से निकली थी .आंसू अपने दर्द के हो या समाज के ,वे निकलेंगे तों कविता भी निकलेगी और वही दिलवालो की ;पहचान ;है
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