मंगलवार, 23 जून 2020

जो लिखा ही नही

तुम पढ़ लो  
वो कविता 
जो 
मैंने लिखा ही नही 
तुम देख लो 
वो चित्र 
जो 
मैंने बनाया ही नही 
तुम बस जाओ 
उन साँसों में 
जो 
मैंने ली ही नही 
तुम आ जाओ 
मेरे घर में 
जो 
कही है ही नही 
पर 
तुम आ सकते हो 
सपने में मेरे 
जिसकी 
सुबह याद नही रहती 
छोटी सब 
आ जाओ 
और बैठ जाओ 
मेरे सामने ताकि 
निहार सकूँ मैं तुम्हें 
जब तक 
मैं मैं हुँ और तुम तुम हो । 

सोमवार, 22 जून 2020

व्यव्स्था की तरह

चलो अब बंद करता हूँ 
खिड़कियाँ 
कमरे की 
और 
मन की भी 
चिंतन की 
और 
आँखों की भी 
बुझा देता हूँ रौशनी 
ताकि 
छा जाये अँधेरा 
अंदर भी और बाहर भी 
क्योकि 
अँधेरा हमें सुकून देता है 
और 
हर चीज से 
आँख बंद कर लेने का बहाना 
सो जाता हूँ मैं भी 
सोने दो लोगो को भूखे पेट 
या फुटपाथ के थपेड़ों 
और 
बारिश में 
लगने दो आग 
किसी की आबरू में 
लूटने दो इज्जत 
या असबाब 
मुझे क्या 
मैंने तो गर्त कर लिया है 
खुद को अँधेरे में 
और 
बंद कर ली है खिड़कियाँ 
ताकि 
कोई चीख सुनाई न पड़े 
और 
न दिखाई दे 
बाहर के अँधेरे 
मेरे अंदर के अँधेरे 
अब 
मेरे साथी बन गए है न 
चलो मुझे गहरी नीद 
सो जाने दो 
इस व्यवस्था की तरह ।

गुरुवार, 18 जून 2020

बच्चा बनिये

घर मे परिवार होता है 
तभी वो घर होता है 
वर्ना तो बेजान दीवारे है
जिनमे आप कैदी है 
पर 
घर मे कोई छोटा सा बच्चा हो 
और 
बन जाइये बच्चा उसके साथ 
वाह 
क्या जिंदगी हो जाती है 
फिर मिल जाती जिंदगी 
और 
बचपन पोंछ देता है सारे गम 
सारी तकलीफे , बीमारी और वेचारगी 
बन गया हूँ मैं बच्चा आजकल 
सचमुच खूब जी रहा हूँ मैं 
भरपूर जी रहा हूँ मैं 
चुरा लेना चाहता हूँ खुशिया 
और इसकी यादे 
अगली बार फिर मिलने तक के लिए ।
आह जिंदगी वाह जिंदगी ।
बच्चा बन कर देखिये 
बच्चो से प्यार करिये 
खुद को बूढा मानने से इनकार करिये ।

व्यव्स्था की तरह

चलो अब बंद करता हूँ 
खिड़कियाँ 
कमरे की 
और 
मन की भी 
चिंतन की 
और 
आँखों की भी 
बुझा देता हूँ रौशनी 
ताकि 
छा जाये अँधेरा 
अंदर भी और बाहर भी 
क्योकि 
अँधेरा हमें सुकून देता है 
और 
हर चीज से 
आँख बंद कर लेने का बहाना 
सो जाता हूँ मैं भी 
सोने दो लोगो को भूखे पेट 
या फुटपाथ के थपेड़ों 
और 
बारिश में 
लगने दो आग 
किसी की आबरू में 
लूटने दो इज्जत 
या असबाब 
मुझे क्या 
मैंने तो गर्त कर लिया है 
खुद को अँधेरे में 
और 
बंद कर ली है खिड़कियाँ 
ताकि 
कोई चीख सुनाई न पड़े 
और 
न दिखाई दे 
बाहर के अँधेरे 
मेरे अंदर के अँधेरे 
अब 
मेरे साथी बन गए है न 
चलो मुझे गहरी नीद 
सो जाने दो 
इस व्यवस्था की तरह ।

चारदीवारी

घर की चारदीवारी मे 
कैद रहने पर 
लगता है कितना अकेलापन 
सडक पर निकल पडे  
तो  
दीखने और मिलने लगे 
हजारो लोग अपने ही ।
इसलिये तोड दी दीवार की सीमाये 
निकल पडे  
फिर 
सब जग अपना लगा
शामिल हो गये 
लोगो के दुख मे 
और सुख मे भी 
और 
भूल गये 
की 
दुख भी कुछ होता है

सोमवार, 15 जून 2020

बेटियाँ

घर से जाते जाते भी 
पापा की           
कितनी चिंता करती है
बेटियाँ 
की 
क्या कहा रखा है ,
क्या क्या 
कैसे कैसे 
कर लीजियेगा ,
क्या खा लीजियेगा                
इत्यादि इत्यादि ।
मन और आंखे 
भिगो देती है बेटियाँ 
और 
खुद पर 
पता नही कैसे 
काबू रख पाती है 
बेटियाँ 
या फिर 
आंखे छुपा लेती है 
बेटियाँ ।

आत्महत्या

आत्महत्या 

अच्छा चढ़ गए 
कुर्सी या स्टूल पर 
बाँध लिया 
पंखे मे रस्सी 
फिर 
थोडी दे रुके थे क्या 
पंखे मे 
रस्सी बाँधने से पहले ?
कुछ रुक कर सोचा क्या 
और 
जब बांधा था 
या 
गले मे डाली थी रस्सी 
तो 
आंखे नम थी क्या 
या 
बह रहा था पनाला 
आंखो से या खून 
फिर 
कैसे कसा होगा गले मे 
उस वक्त क्या था मन मे 
मां पिता भाई बहन 
कोई दोस्त या प्रेमिका 
या सर्फ गुस्सा 
पर किससे ? 
खुद से या ?
पर एक पल भी 
नही आया ख्याल 
बहुत अपनो का
या फिर अपना ?
बहुत नशे मे थे क्या 
की 
कुछ होश ही नही था 
या फिर 
मौत 
खुद नशा बन गई थी
उस पलायन के वक्त  
कसा था फंदा 
तो विचलित हुये क्या 
अच्छा 
सच सच बताओ 
अन्तिम विचार क्या
आया था मन मे 
माँ की चीखे 
सुनाई पडी क्या 
और 
टूटा हुआ पिता 
और भी सब 
सचमुच वाले अपने 
अच्छा 
जब सरका दिया स्टूल 
और झूल गये 
पर मरे नही थे 
क्या 
तब मन मे आया 
काश अब बच जाते 
वो 
अन्तिम इच्छा क्या थी 
कायर कही के 
तुम पैदा ही क्यो हुये 
जब लड़ नही सकते थे 
जीवन के लिए 
जीवन से 
अपने पिता अपनी माँ 
और 
अपनो के लिए खुद से ।