मंगलवार, 31 अक्तूबर 2023

कुछ भी करो पर उपयोगी बने रहो

एक उम्र के बाद आप उपयोगी नही होते 
किसी के लिए 
बल्कि लोगो की जरूरत होती है आप को 
तब !
क्या आप ने कभी फुटबाल खेला है 
हर खिलाडी फुटबाल को सरका देता है 
दूसरे की तरफ एक रणनीति से 
पर जिन्दगी के मैदान पर 
लोग फुटबाल फेंकते रहते है 
दूसरे की तरफ बला समझ कर 
खेल का मैदान हो या जिन्दगी का 
फुटबाल पैरो से ठोकर खाने के ही काम आती है
और घिस जाने पुरानी हो जाने पर फेंक दी जाती है 
कूड़ेदान मे
इसलिए कुछ भी करो पर उपयोगी बने रहो ।

रविवार, 29 अक्तूबर 2023

ज़िंदगी सिर्फ़ तुम्हारी नहीं

जिन्दगी सिर्फ तुम्हारी नही 

लोग आत्महत्या कैसे कर लेते है 
कितना तकलीफदेह होता है 
जान कर जान देना
जहर पिया तो उसका डर 
गोली चलाने मे कांपते हाथ 
और 
उसके दर्द का एहसास 
नस काटी तो दर्द 
और 
बहते खूँन की दहशत 
और 
फासी लगाया तो कितनी हिम्मत 
गर्दन लटक जाने 
सांस घुट जाने की तकलीफ ।
कैसे हिम्मत आती है 
और 
कर लेने के बाद 
आखिरी क्षणो मे 
सब किया वापस हो जाये
का ख्याल आता है क्या 
क्या तब जिन्दगी से
प्यार महसूस होता है ?
क्या तब इच्छा होती है 
कि 
लड़ले अंतिम लडाई पर ये नही ।
क्या ये क्या वो 
पर ये सब बतायेगा कौन ?
न ये न वो ।
और 
पीछे छूटो का दर्द
असहाय स्थिति
अनिश्चित कल 
और 
मौन मौन बस मौन ।
मत करो ऐसा 
जिसका कोई जवाब नही 
जिसका कल कोई हिसाब नही ।
लडो और खूब लडो 
क्योकी जिन्दगी सिर्फ तुम्हारी नही 
अपनो की भी अमानत है ।

शनिवार, 28 अक्तूबर 2023

कौन लाएगा उजाला भारत की जिन्दगी मे ।

दीपावली पर 
बड़े शहरो मे 
दुकानो पर 
महंगी गाडिया 
कम पड़ जाती है 
और 
दिये उदास 
पडे रहते है 
जमीन पर 
गरीब 
एक दिया भी 
नही खरीद पाता है 
सेंसेक्स और शेयर 
उछल रहा है 
और 
सोना चाँदी भी 
पर 
एक और चीज 
उछल रही है 
किसानो और 
बेकारो की 
आत्महत्या की संख्या 
सचमुच आज भी 
एक ही देश मे दो है 
एक 
10 फीसदी इंडिया 
वैभव से संपन्न 
जिन्हे देख कर 
तय होती है योजनाये 
और आँकड़े 
दूसरा 
90 फीसदी भारत 
बदहाल और उपेक्षित
मिली थी रात को 
12 बजे आज़ादी 
पर 
90 फीसदी भारत 
की जिन्दगी मे 
आज भी अन्धेरा है ।
कौन लाएगा उजाला 
भारत की जिन्दगी मे ।

सोमवार, 16 अक्तूबर 2023

आखिर ये जंग क्यो ?

आखिर ये जंग क्यो ?

कम या ज्यादा 
बर्बाद दोनो हो रहे है 
रुस भी और युक्रेन भी 
इंसान ही मर रहे है 
रुस मे और युक्रेन मे भी 
एक दूसरे को मारने वाले
एक दूसरे को जानते तक नही है 
पर मारे जा रहे है
एक दूसरे को 
टूट रहे है घर,पुल,सड़के
कारखाने ,स्कूल और अस्पताल 
बन रहा है मलवे का ढेर 
सिंचित हो रही है 
लहू से जमीन दोनो की
जंग ने हमेशा लहू पिया 
और 
तबाह किया सब कुछ 
जंग नही थी तब क्या नही था
जंग से क्या मिला है  
आखिर ये जंग क्यो ?

उफ्फ ये स्याह अंधेरा !

रातें 
कितनी स्याह होतीहै 
क्यो होती है 
इतनी स्याह रातें 
ज्यो ही सूरज 
पच्छिमी की खोह में 
डुबकी लगाता है 
पूरब से फैलने लगती है 
स्याह रात 
टिमटिमाते हुई 
रोशनियां भी 
जुगनू से ज्यादा 
कुछ नही होती 
कितनी भयानकता 
समेटे होती है स्याह रात 
जिंदगी गर्त हो जाती है 
धीरे धीरे इसके आगोश में 
और 
कितना अकेलापन 
तारी हो जाता है 
जिसमे जिंदगी 
सवाल बन जाती है 
इन सवालो का 
कोई जवाब नही होता 
खुद से ही बाते करना 
खुद को तसल्ली देना 
खुद के अकेलेपन से लड़ना 
और लड़ते लड़ते 
नीद के लिए लड़ना 
ताकि आंख बंद कर 
अनदेखा कर सके 
इस स्याह अंधेरे को 
और अकेलेपन को 
पर 
कितना स्याह है सब कुछ 
चलो आंखे बंद कर लेते है 
और 
सोच लेते है 
की 
अकेले नही है हम 
तमाम सूरज उग गए है 
हमारी जिंदगी में ।
उफ्फ ये स्याह अंधेरा !

रविवार, 15 अक्तूबर 2023

कुछ सवाल

मेरी कविता 

कुछ सवाल है 
जो अनुत्तरित है 
कुछ जवाब है 
जो खुद 
सवाल बन गए है 
सिलसिला टूटता ही नही 
न सवालो का 
न जवाबो का 
क्रिया और प्रतिक्रिया जारी है 
पर 
कही तो कोई दीवार होगी 
या 
होगा इस सफर का डेड एंड 
जो रोक देगा क्रिया को 
और 
प्रतिक्रिया को भी 
और 
फिर सब होगा शांत शांत ।

नदी में तैरती लाशें

नदी में तैरती लाशें 

जब लाइन लग गयी लाशों की
जब बोली लगने लगी लाशो की 
जब कंधे की क़ीमत हो गयी लाशो की 
जब लकड़ी ब्लैक होने लगी लाशो की 
जब टोकन मिलने लगे जलने को लाशो की 
तब
हाँ तब लाशें उठी और चल पड़ी 
नदियों की तरफ़ 
कि आग नही तो पानी ही सही 
जलेंगे नही तो कछुओं या किसी और 
जानवरों के भोजन के काम आ जाएँगे
आख़िर इनकी राख भी तो नदी में ही जाती है 
और 
इन लाशो को तो अपने लेने ही नही आए 
क्योंकि लाश से रोग फैलता है 
पर लाश की सम्पत्ति और बैंक बैलेंस से नही 
इसलिए 
इन लाशों ने ख़ैरात से जलने से इनकार कर दिया 
और ख़ुद जाकर बह गयी नदी में 
किसी सरकार की कोई गलती नही 
गलती लाशो की है 
की उसने अपनो को 
इतना कायर और स्वार्थी क्यो बनाया ।
नदी तो प्रतीक है इस व्यवस्था का 
और लाशें भारत की जनता का ।

ईश्वर क्या है

ईश्वर क्या है ? 
जो अज्ञात था है और रहेगा 
या 
प्रकृति ही ईश्वर है 
क्योंकि 
पत्थर पेड़ और 
विभिन्न पशु पक्षी को माना 
हमने ईश्वर ,
जो हमारा नुक़सान कर सका 
या 
जिससे हम डरे उसे माना ईश्वर 
फिर हम समझदार हो गए 
तो गढ़ने लगे ईश्वर के स्वरूप 
ईश्वर ने सब कुछ बनाया 
पर 
हम बनाने लगे अपने अपने ईश्वर 
ईश्वर एक डर है 
ईश्वर हमारा लालच है 
ईश्वर जीने की इच्छा है 
ईश्वर मौत का डर है 
ईश्वर हथियार बन गया हमारा 
ईश्वर व्यापार बन गया हमारा 
किसी ने नही देखा ईश्वर 
किसी से नही मिला ईश्वर 
पर 
डीह बाबा , सम्मो माई 
जियुतिया माई से लेकर 
संतोषी माता तक 
और 
साई बाबा से लेकर 
तमाम पत्थरों तक फैल गए ईश्वर 
फिर ईश्वर बनने का चस्का 
इंसानो में भी लग गया 
पहले सब डरते थे बुरा करने से 
जब ईश्वर अज्ञात था 
या 
उसके प्रतीक दुर्गम जगहों पर थे 
मनुष्य ने अपने स्वार्थ में गली गली 
चौराहे चौराहे पर बैठा दिया ईश्वर 
तो डर ही ख़त्म हो गया 
ईश्वर के ठेकेदारों ने निकाल दिए रास्ते 
हमेशा पाप और बुरा करो 
पर बीच बीच में कही नहा आओ 
पूजा करते रहो कराते रहो 
और जिसको जो ठीक लगे 
उस धर्म स्थान पर जाते रहो 
पाप धुल जाएगा 
और 
इस व्यवस्था से बढ़ने लगा पाप 
जब कोई एक रावण कंस जडीज था 
तो अवतार ले लेता था ईश्वर 
कहानिया तो यही बताती है 
पर जब बुरो की फ़ौज हो गयी 
तो 
अपने आसमान में छिप गया ईश्वर 
बेचारा किस किस से लड़े ईश्वर 
और 
किस शक्ल में आए दुनिया में 
कि लोग स्वीकार ले उसे ईश्वर 
क्योंकि 
इंसान ने गढ़ दिए है हज़ारो 
और 
ईश्वर से परिचय का दावा करने वाले 
ख़ुद भी बन बैठे है ईश्वर 
जिसे देखा ही नही 
उसे क्या मानना ईश्वर 
ओकसीजन आज ईश्वर है 
और 
उसके लिए पेड़ ईश्वर है 
पानी भी ईश्वर है 
जी हाँ प्रकृति ही ईश्वर है 
इसलिए मंदिर मस्जिद नही 
प्रकृति को बचाओ 
ईश्वर अल्ला जहाँ है वही रहने दो 
अपने बचने के ठिकाने बनाओ । 
ईश्वर कल्पना है 
उस पर कहानी और कविता खूब लिखो 
पर प्रकृति के साथ दिखो 
ईश्वर शक्ति है तो उससे डरो 
और कोई पाप मत करो 
ईश्वर के ईश्वर मत बनो 
बन सकते हो तो भागीरथ बानो 
नदियों को बचाओ 
देवस्थलो के बजाय 
जीवन स्थलो पर पैसा लगाओ 
देवस्थलों के बजाय पेड़ उगाओ
ईश्वर ख़ुश होगा और जीने देगा 
वरना एक दिन पानी भी नही पीने देगा ।

मिसाइलो के दिमाग नही होता

बम और मिसाइलो के दिमाग नही होता 
बम और मिसाइलो के दिल भी नही होता 
नही जानते बम की वो क्या करते है 
लाशे देख कर मिसाइलों के आसू नही निकलते 
इन्हे नही पता कि घर या बस्ती कैसे बसती है 
कोई हथियार इंसान को नहीं पहचानता है 
इनके धमाके ये खुद नही सुन पाते है 
फट जाने पर उनके खून नही निकलता है 
पर इन्हे चलाने वाले हाथ तो सब जानते है । 

चंदा तुमने कितना भरमाया सालो साल

चंदा तुमने कितना भरमाया सालो साल 
इंसा तुमको समझ न पाया सालो साल 
स्त्री का व्रत हो या रोजा हो मुस्लिम का 
सबने ही तुमसे शक्ति पाया सालो साल 

मां ने बच्चो को भरमाया सालो साल 
भूखे को रोटी बतलाया सालो साल 
चरखा बुढिया कात रही है समझे थे 
चादनी रात में खीर बनाया सालो साल 

( पूरा करना है )

शनिवार, 14 अक्तूबर 2023

सूरज क्या तुम सत्ता हो

सूरज तुम दिल्ली की सत्ता 
आये थे अहंकार में चूर 
गर्म लावा अहंकार का 
सब रहते है शांत
सहते है ताप तुमारा
नही मिलाते आंखे तुमसे
इंतजार करते है
जब ठंडे हो जागोगे तुम 
अब तुम्हारी शाम हो गई 
अब स्वीकार करो चुनौती 
आंख मिलाओ अब तुम सबसे
क्यों छुपने को भाग रहे हो 
डूब रहे हो तुम पश्चिम में 
फिर वो अहंकार था कैसा 
जो उठता है वही डूबता
क्या ये तुमको पता नही था 
इसलिए मदमस्त बहुत थे 
देखो अब तुम अस्त हो रहे 
डूब रहे हो किसी खोह में 
फिर जब आना सोच कर आना 
तुम भी अंतिम सत्य नही हो ।

शुक्रवार, 13 अक्तूबर 2023

ये दर्द है जो गया नहीं

वो दर्द दे कर चला गया ।
ये दर्द है जो गया नहीं 

मैं तो तड़प के रह गया 
उसने लौट कर देखा नहीं 

मैं चीखता ही रह गया 
उसने कुछ भी सुना नहीं 

उसकी याद में बेहाल मैं 
उसने मुझे देखा नहीं 

मेरी निगाह है उसी राह पर 
पर वो इधर मुड़ा नहीं । 

खुश रहना कह के चला गया 
मेरे दर्द की ये दवा नही 

दुनिया से चला जाऊंगा मैं 
पर उसको होगा पता नहीं ।

सोमवार, 9 अक्तूबर 2023

उठा लूंगा मैं ये कलम या बंदूक ।

मैं लिखना चाहता हूं 
फिलिस्तीन और इजराइल पर 
मैं लिखना चाहता हूं 
यूक्रेन और रूस पर 
मैं लिखना चाहता हूं 
मणिपुर और मेवात पर 
मैं लिखना चाहता हूं 
दुनिया की हर हिंसा और मौत पर 
अपने आंसुओ कि स्याही बना कर 
लिखना चाहता हूं मैं 
पर ये क्या हिंसा सोचते ही 
आंसू लाल हो गए सुर्ख लाल 
मेरे हाथ कांपने लगे ओठ लरजने लगे 
गिर गई कलम मेरे हाथ से 
और गिर कर बंदूक बन गई 
नही उठा रहा हूं ये बंदूक मैं 
कि
मेरे भीतर का भी जानवर न जाग जाए 
नही लिख रहा में अब कुछ भी 
और आंसू भी तो गायब है 
कौन मेरा कोई सगा मरा है 
मैं क्यों परवाह करू इन सबकी 
जब मौत मेरे दरवाजे पर दस्तक देगी 
तब उठा लूंगा मैं ये कलम या बंदूक ।