सोमवार, 16 अक्तूबर 2023

उफ्फ ये स्याह अंधेरा !

रातें 
कितनी स्याह होतीहै 
क्यो होती है 
इतनी स्याह रातें 
ज्यो ही सूरज 
पच्छिमी की खोह में 
डुबकी लगाता है 
पूरब से फैलने लगती है 
स्याह रात 
टिमटिमाते हुई 
रोशनियां भी 
जुगनू से ज्यादा 
कुछ नही होती 
कितनी भयानकता 
समेटे होती है स्याह रात 
जिंदगी गर्त हो जाती है 
धीरे धीरे इसके आगोश में 
और 
कितना अकेलापन 
तारी हो जाता है 
जिसमे जिंदगी 
सवाल बन जाती है 
इन सवालो का 
कोई जवाब नही होता 
खुद से ही बाते करना 
खुद को तसल्ली देना 
खुद के अकेलेपन से लड़ना 
और लड़ते लड़ते 
नीद के लिए लड़ना 
ताकि आंख बंद कर 
अनदेखा कर सके 
इस स्याह अंधेरे को 
और अकेलेपन को 
पर 
कितना स्याह है सब कुछ 
चलो आंखे बंद कर लेते है 
और 
सोच लेते है 
की 
अकेले नही है हम 
तमाम सूरज उग गए है 
हमारी जिंदगी में ।
उफ्फ ये स्याह अंधेरा !

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