गुरुवार, 20 मार्च 2014

कह देता हूँ किसी से कि जरा हाथ बढ़ाना

कह देता हूँ किसी से कि जरा हाथ बढ़ाना
नासमझ मुझको अपाहिज ही मान लेते हैं ,
मान कर कमजोर मुझको वे उपदेश देते है
अज्ञानी मान कर मुझको पूरा ज्ञान देते है | 

मेरी आँखे गीली क्यों है ?

मेरी आँखे गीली क्यों है ?
और
नदी क्यों बहने लगी  ?
गलत न समझ ले आप
मैं कभी नहीं रोता हूँ
कभी नहीं रोया हूँ मैं
और
क्यों रोऊँ मैं
मेरी आँखों में पानी ही
बहुत ज्यादा है
बस छलक पड़ता है वो
जब भारी हो जाता है मन
और बैठने लगता है दिल
तो छलक पड़ता है
आँखों का खारा पानी
सच रोता नहीं हूँ मैं ।