सोमवार, 23 मार्च 2015

जो तेरी छत पर बैठ गया वो मुझको मंजूर नहीं

जो तेरी छत पर बैठ गया वो मुझको मंजूर नहीं
चाहे वो एक परिंदा है पर मेरी छत तो से दूर रहे
तू मुसलमान मैं हिन्दू हूँ मेरा धर्म भ्रष्ट हो जायेगा
वो तेरी छत पर बैठा है तो तेरे धर्म को लायेगा
रे खबरदार तू रोक उसे उड़ने से पहले टोक उसे
या गंगाजल मुझे लाने दे पहले उसको नहलाने दे
बोला पक्षी कातर होकर तू किस किस को नहलाएगा
गंगा में वजू किया उसने और मैंने भी दुबकी मारी है
क्या गंगा को भी नहलाएगा या दूजी गंगा लायेगा
पानी ,धुप ,हवा और फसले,पक्षी ,गाय भैंस की नस्ले
इनमे हिन्दू पहचान जरा तय कर दे मुसलमान जरा
लहू का मजहब तय कर दे किरणों में अपने रंग भर दे
सारे ग्रंथो को पढ़ के बता तेरे इश्वर की जाति है क्या
तू अज्ञानी टोकेगा क्या उड़ने से तू रोकेगा क्या
प्रकृति जब खेल दिखाएगी तू खुद कही उड़ जायेगा
किस जगह गिरेगा तू जाकर क्या तू बतला ये पायेगा
खुद का तुझको कुछ पता नहीं तू दुनिया को क्या साधेगा
अपनी सांसो का पता नहीं तू प्रकृति को क्या बांधेगा
सबको स्वतंत्र ही जीने दे ये नदिया सूरज सब सबके है
ये पृथ्वी जंगल और पहाड़ सब तूने नहीं बनाये है
ये इतने थलचर और जलचर सब तूने नहीं बसाये है
इनमे से तू भी एक अदद ये सब है तब ही तू भी है
ये आसमान भी सबका है ये विधि विधान भी सबका है
सब तेरे है तू सबका है गर इतना तू पहचान  गया
तू भी कुछ पल का किस्सा है बस इतना ही तू जान गया
तो अमन चैन छा जायेगा दुनिया खुशहाल बनाएगा
तो अब बस तू इंसा बन जा नफरत की मत बीन बजा
आ दुनिया को खुशहाल करे बस प्रेम से मालामाल करे ।
तेरी छत या उसकी छत सब झटके में गिर जाती है
जब पृथ्वी करवट लेती है उसकी छाती फट जाती है
तू देख चूका तब क्या होता सब वही दफ़न हो जाते है
सब जाति धर्म या धन दौलत सब के सब मिट जाते है ।