कुछ बड़े लोग है
जो प्रेम और इज्जत से
पहले घर बुलाते है
फिर
आहिस्ता से धीमे जहर का
इंजेक्शन लगाते है
आप जितना तड़पते हो
वो उतना अघाते है ।
पहचान उन सभी का मंच है जो जिंदगी को जीते नहीं जीने का निर्वाह करते है .वे उन लोगो में नहीं है जिन्हें जीवन मिला है या जीने का मकसद उनके साथ रहता है .बस जीने और घिसटने के बीच दिल वालो की कलम से और दिल से जो निकल जाता है वही कविता है .पहली कविता भी तों आंसू से निकली थी .आंसू अपने दर्द के हो या समाज के ,वे निकलेंगे तों कविता भी निकलेगी और वही दिलवालो की ;पहचान ;है
जो आये थे भिखारी बन कर मुझसे मांगने
मैं देखता रह गया वो मुझे कंगाल कर गया
वो घिसी चप्पल में कितना मजलूम लगता था
बड़ा मजबूर लगता था बडा मासूम लगता था
जब मारा पीठ में खंजर मुझे बेहाल कर गया