शनिवार, 25 दिसंबर 2021

और सोचने मे क्या जाता है

सोचता हूँ 
मैं फिर बच्चा हो जाऊ 
जो कुछ नही जानता 
सोचता हूँ 
उड़ जाऊँ नील गगन मे 
पक्षी बन कर 
सोचता हूँ 
खूब खाऊँ
परेशान हो जाऊँ 
सोचता हूँ 
खूब चलूँ 
और थक जाऊँ 
कि नीद आ जाये 
शान्त शान्त गहरी 
सोचता हूँ 
भाग जाऊँ 
अपने से दूर कही 
जहा कोई जानता न हो 
सोचता हूँ 
रम जाऊँ 
किसी भी इश्क मे 
की रश्क न रहे 
पर 
ये भी क्या जिन्दगी 
न ये किया न वो किया 
एलान कर दूँ 
कि सब किया हा सब किया 
सोचता हूँ 
फिर से 
पकड लाऊं 
खोया हुआ हमसफर 
और फिर बंद हो जाऊँ 
अपने दिल के राजमहल मे ।
और 
सोचने मे क्या जाता है ।

कोई टिप्पणी नहीं :

एक टिप्पणी भेजें