शनिवार, 25 दिसंबर 2021

बहुत दिनो से

बहुत दिनो से 
चिडिया ना चहकी आंगन मे 
बहुत दिनो से 
कोयल ना कूकी पेड़ो से 
बहुत दिनो से 
मोर नही नाचा सावन मे 
बहुत दिनो से 
ना फूल खिला है मेरे मन मे 
क्या है ये सब 
सफर अन्त का 
या मुरझाता मन 
तन तो भला भला दिखता है 
पर शायद मन घायल है 
बहुत दिनो से 
कोई गाना याद न आया 
बहुत दिनो से 
यादे भी तो कुंद पडी है 
बहुत दिनो से 
सारी घडिया बंद पडी 
बहुत दिनो से 
सभी खिड़कियां बंद पडी है 
दरवाजे से हवा रोशनी 
सब बाहर है 
बतियाए तो किससे आखिर 
खिसियाये तो किस पर आखिर 
सलवट जितनी है बिस्तर पर 
उससे ज्यादा मन कर भीतर 
बहुत दिनो से ।

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