शनिवार, 25 दिसंबर 2021

इंतज़ार है इंतज़ार है इंतज़ार है

गर्म हवायें बहुत तपिश थी 
कितनी काली अंधियारी थी 
जुल्म ज़्यादती शोषण कितना 
और ग़ुलामी की ज़ंजीरे 
फिर वो रोटी बटी हर जगह 
गोली और धमाके गूंजे 
बिन तैयारी ही था सब कुछ 
थाली में थे गए परोसे ख़ुद के बेटे 
टुकड़े टुकड़े में ख़त्म हुआ सब 
हाँ गोली तो फेल हो गयी 
पर बोली को जगा गयी थी 
बहुत दिनो की चुप्पी थी फिर 
फिर गूंजा था जोश सभी का 
फिर आया था होश सभी को 
पर बाक़ी वो भूल नही की 
एक लँगोटी वाला आगे 
पीछे पूरा देश चला था 
ये हथियार कुछ नया नया था 
दुनिया हतप्रभ दुश्मन हतप्रभ 
इस हथियार का ना जवाब था 
पर जुल्मों का ना हिसाब था 
करो या मरो का नारा था 
चौरी चौरा ने रोक दिया ये 
फिर न कभी ये दोबारा था 
ना मारेंगे ना मानेगे 
युद्ध का नया ये नारा था 
सत्य अहिंसा का प्रयोग था 
सत्याग्रह और असहयोग था 
जिसका सूरज ना डूबा था 
चली अहिंसा डूब गया वो 
छटा अंधेरा सूरज निकला
आज हवाये कुछ ठंडी थी 
पर बँटवारे की आबाजे 
कान के पर्दे फाड़ रही थी 
धरती अपनी चिंघाड़ रही थी 
फिर फ़क़ीर ही निकला बाहर 
जान हथेली पर फिर लेकर 
कैसे कैसे थी शांति आयी 
पर बहुतो को कहा थी भाई 
वहाँ प्रार्थना हाथ जुड़ा था
आतंकी सामने खड़ा  था
जिसने कल तक साँस न ली थी 
उसने गोली खूब चलायी 
इंगलिश गोली इंगलिश पिस्टल
हाँ कायर को खूब थी भाई 
फिर से सूरज डूब गया था
फिर हवाये गर्म हुयी थी 
आज का मौसम फिर वैसा है 
वही अंधेरा वही कालिमा 
पर फ़क़ीर वो नही यहाँ है 
अब मौसम को कौन बचाए 
कौन उगाए फिर सूरज को 
ठंडी हवाये कौन चलाए 
इंतज़ार है इंतज़ार हाँ इंतज़ार है ।

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