शनिवार, 27 मई 2023

आंधियां है जो वक्त को भी पछाड़ देती है ।

ये अधियाँ है पेड़ों को जड़ो से उखाड़ देती है 

जीवन में आती है तो जीवन बिगाड़ देती है ।

इतना मत इतराओ अपने दौड़ने पर यारो

ये आंधियां है जो वक्त को भी पछाड़ देती है ।

चलते ही जाना चलते ही जाना है ।

एक कविता आप सभी के लिए --

पांव है थके थके पर दूर बहुत जाना है 

पर चलने की उमंग है मन में उत्साह है  

चलना ही जीवन है रुक जाना अंत है 

चल रहा हूँ मै लेकिन रास्ता अनंत है ।

जीवन संघर्ष है, पहाड़ की चढ़ाई है 

अपने पुरसार्थ क़ी ह़ी ये कमाई है 

चलना है,रुकना नहीं चलते ही जाना है ।

रास्ते  में कांटे हो, जंगल हो, पहाड़ हो 

रास्ते में बाधा कोई सिंह की दहाड़ हो 

चलते ही जाना है चलते ही जाना है  ।

आते है तो रोते हुए और सब हंसते है 

रास्ते में कभी मौन,हंसना भी रोना भी 

जाते हुए मौन खुद, बाकी सब रोते है 

कौन परवाह करे हंसने की रोने की 

मंजिल को पाना है चलते ही जाना है ।

मंजिल नहीं मंजिलें है जैसे हो सीढियाँ 

हौसले बनाये रख कदम कदम चलना है 

चलते ही जाना है चलते ही जाना है ।

रास्ता दिखाया था बड़ों ने आगे कभी 

वो तो चले गए अपनी अनंत यात्रा पर 

अब आगे चलना है रास्ता दिखाना है 

पीछे है हमारे जो उन्हें रास्ता बताना है 

मंजिलें दिखाना उन्हें काँटों से बचाना है 

यही है कर्त्तव्य बस यही वो आयाम है 

अपनों को धीरे धीरे वाम पर पहुँचाना है 

चलते हमें जाना है चलते हमें जाना है ।

गिरे, उठे ,चल दिए, पार की खाइयाँ 

लडखडाये फिसले भी पार की पहाड़ियां 

काँटों के चुभने की कभी परवाह नहीं 

बहुत तेज गिरे भी पर निकली आह नहीं  

पैर हो जमीन पर अहंकार दूर रहे 

किसको परवाह तब कौन कौन क्या कहे 

बस यही सत्य है ,यही विकल्प है और संकल्प है

सारे सोपानों को ,मंजिलों को पाना है 

एवरेस्ट पर्वत पर झंडा फहराना है 

चलते ही जाना है चलते ही जाना चलते ही जाना है ।

गुरुवार, 18 मई 2023

कोई नही है कोई नही है कोई नही है

अपनी चाहत अपनी तमन्ना बस उनकी है 
इसमें अपना कुछ भी नही है
ये उनको बतलाए कौन
कोई नही है कोई नही है कोई नही है 
अपने आंसू ,अपनी तडपन बस अपना है 
इसमें उनका कुछ भी नही है 
मेरा दर्द दिखाए कौन 
कोई नही है कोई नही है कोई नही है 
किसको जाकर गीत सुनाऊं 
किससे अपना मन बहलाऊ 
किसको दामन चाक दिखाऊं 
कोई नही है कोई नही कोई नही है 
उनको ये सब बतलाए कौन
उनको पता बताए कौन 
या उनके घर पहुंचाए कौन 
कोई नही है कोई नही है कोई नही है 

( बाद में पूरा करने की कोशिश करता हूं)

बुधवार, 17 मई 2023

बांध का टूटना

आप ने कभी
कोई बाँध टूटता हुआ देखा है 
शायद हाँ भी और ना भी 
वैसे ही 
कभी कभी फूट पड़ता है 
इंसान पूरे वेग से 
और बह जाता है 
वर्षो से रुका हुआ पानी 
और फिर 
छा जाता है गहन सन्नाटा ।

फट न जाये अस्तित्व ही ।

चाहे तो दमघोटू कविता पढ़िए ----

क्या कभी आपने महसूसा है 
की 
बाहर घनघोर सन्नाटा हो 
और 
अंदर दमघोटू और इतना शोर 
की 
लगता है नसे ही नही 
शरीर की कोशिकाएँ भी 
फट पड़ेंगी 
नही हो सकती इससे बड़ी सज़ा 
फांसी में 
एक झटके से मुक्ति मिल जाती हैं 
और 
अजीवन कारावास में भी 
लोगो का साथ 
पर ऐसी सज़ा कल्पनातीत है 
पता नही 
किसी को इस सज़ा का एहसास है 
या नही 
इससे ज्यादा लिखा नही जा सकता 
इस विषय पर 
जेल से भी पेरोल मिल जाती है 
जिंदगी में भी 
कोई पेरोल की व्यवस्था हो सकती है 
कौन मुक्ति देगा इससे 
मुक्ति मिलेगी भी या नही ।
या 
सन्नाटा और 
अथाह लहू में बहता शोर 
साथ साथ चलते रहेंगे 
जब तक 
फट न जाये अस्तित्व ही ।

लोकतंत्र का नपुंसक गुस्सा

लोकतंत्र का नपुंसक गुस्सा  

हा 
मुझे बचपन से गुस्सा आता था 
किसी इंसान को अपशब्दों के साथ
जाति के  संबोधन से 
मुझे गुस्सा आता था 
शाहगंज से लखनऊ होते आगरा तक 
मैं ट्रेन के दरवाजे पर 
या बाथरूम के पास बैठ कर आता था 
की
भीड़ ज्यादा है तो  
ट्रेन में डिब्बे क्यो नही बढ़ते 
मुझे गुस्सा आता था जब कोई 
दूसरों के मैले को उठा कर 
सर पर लेकर जाता था 
गुस्सा आता था जब दूर से फेंक कर 
किसी को खाना दिया जाता था 
गुस्सा आता था 
जब सायकिल के हैंडिल पर 
दो बाल्टियां 
और 
पीछे कैरियर पर मटका रख 
दो मील दूर पानी लेने जाता था 
शहर में 
गुस्सा आता था 
जब गांव जाने के लिए 
मीलो सर पर बक्सा रख कर 
चलना पड़ता था अंधेरे ने 
गुस्सा आता था 
जब गांव में बिजली भी नही थी 
गुस्सा आता था 
जब पुलिस अंकल किसी को 
बिना कारण बांध कर ले जाते थे 
माँ बहन की गालियां देते हुए 
और 
न जाने कितनी बातो पर गुस्सा आता था 
पर किसी भी चीज को 
बदल सकने की ताकत नही थी 
इस बच्चे में 
उसके बाद भी 
बहुत गुस्सा आता रहा रोज रोज 
और आज भी गुस्सा खत्म नही हुआ 
रामपुर तिराहे पर गुस्सा हुआ था मैं 
हल्ला बोल पर भी गुस्सा दिखाया था 
पर खुद शिकार हो गया 
हर बात पर जिस पर 
जिंदा आदमी को गुस्सा आना चाहिए 
मुझे तो गुस्सा आता रहा 
और 
मैं दुश्मनो में शुमार हो गया 
मुझे निर्भया ,दादरी ,मुजफ्फरनगर 
और 
रंगारंग कार्यक्रम पर भी गुस्सा आया 
पर 
ताली पिटती भीड़ में 
खो गया मेरा गुस्सा 
और में भी खो गया साथ साथ 
पानी पीकर या पानी के बिना 
लोगो के मर जाने पर भी आया गुस्सा 
संसद हो या मुम्बई 
मेरा गुस्सा सड़क पर आया 
लॉटरी हो या शहादत 
सड़क पर फूटा गुस्सा 
वो खरीदने अथवा मारने की धमकी 
नही रोक सकी मेरे गुस्से को 
धक्के खाती जनता और कार्यकर्ता 
भी बने मेरे गुस्से के कारण 
मुझे आज भी गुस्सा आता है 
बार बार बदलते कपड़ो पर 
अन्य देशों में मेर देश की बुराई पर 
पिटती विदेश नीति 
और अर्थव्यवस्था पर 
रोज शहीद होते सैनिको पर 
कश्मीर ,अरुणाचल और नागालैंड पर 
रोज के बलात्कार पर 
रोहतक से छत्तीसगढ़ तक पर 
गुस्सा आया है सहारनपुर पर मथुरा पर 
इंच इंच में होते अपराध पर 
थाने से तहसील होते हुये 
आसमान तक के भ्रष्टाचार पर 
भाषणों के खेप पर 
आसमान छूती महंगाई पर 
न जाने कितनी चीजे है 
गुस्सा होने को 
पर अब 
में देशद्रोही करार कर दिया जाता हूँ ।
और 
मेरा गुस्सा अपनी नपुंसकता 
और 
आवाज के दबने पर उफान मारता है 
पर 
मेरे छोटा हाथ , मेरा छोटा सा कद 
और साधारण आवाज 
सिमट जाती है कागज के पन्नो पर 
फेसबुक ट्विटर ,ब्लॉगर पर 
और दीवारों के बीच 
क्योकि इस देश मे गरीब के लिए 
गरीबी और बेकारी से लड़ने को भी 
धर्म या जाति की भीड़ चाहिए 
जो मेरे पास नही है 
और 
चाहिए धन काफी धन 
जो मंच सज़ा सके 
,रथ बना सके 
और मीडिया को बुला सके ।
जो मेरे पास नही है 
गुस्सा होकर बैठ जाता हूँ लिखने 
कोई कविता या कुछ विचार 
ताकि गुस्सा 
समय के थपेड़े में मर न जाये ।

रोज की जिंदगी और ये घर ।

रोज की जिंदगी और ये घर ।
=================
एक घर है
जिसके बाहर एक गेट 
और 
उससे बाहर मैं तभी निकलता हूँ 
जब शहर मे कही जाना हो 
या डॉक्टर के यहा जाने की मजबुरी 
फिर एक लान है 
जहा अब कभी नही बैठता 
किसी के जाने के बाद 
फिर एक बरामदा 
वहाँ भी आखिरी बार तब बैठा था 
जब बेटियाँ घर पर थी 
और बारिश हुई थी 
और 
मेरा शौक बारिश होने पर 
बरामदे में बैठ कर हलुवा 
और गर्मागर्म पकौड़ियां खाना 
और अदरक की चाय 
वो पूरा हुआ था आखिरी दिन 
हा
ड्रॉईंग रूम जरूर गुलजार रहता है 
वही बीतता है ज्यादा समय 
सामने टी वी , मेज पर लैपटॉप 
और 
वो खिड़की 
जिससे बाहर आते जाते लोग 
एहसास कराते है 
की आसपास इंसान और भी है 
अंदर मेरा प्रिय टी कार्नर 
जहा सुबह क्या 
दोपहर तक बीत जाती है 
नाश्ते चाय ,अखबार ,फोन 
और 
फेसबुक ट्विटर और ब्लॉगर में 
पता नही चलता 
कैसे बिना नहाए शाम हो जाती है 
उस कोने में 
बच्चो का कमरा न जाये तो अच्छा 
अब कौन याद करे और ! 
रसोई में जाना जरूरी है 
और बाथरूम में भी 
थोड़ा लेट लो वाकर पर 
और खुद को बेवकूफ बना लो 
की हमने भी फिटनेस किया 
पांच बदाम भी खा ही लो 
कपड़े गंदे हो गए मशीन है 
बस डालना और निकलना ही 
नाश्ता और खाना 
और 
कुछ अबूझ लिखने की कोशिश 
घृणा हो गयी ज्ञान और किताबो से 
जिंदगी बिगाड़ दिया इन्होंने 
पर बेमन से पढने की कोशिश 
कभी कभी आ जाता है कोई 
भूला भटका , 
उसकी और अपनी चाय 
और 
बिना विषय के समय काटना 
लो हो गयी शाम 
और 
कुछ पेट मे भी चला ही जाए 
बिस्तर कितनी अच्छी चीज है 
नीद नही आ रही लिख ही दे कुछ 
नीद दवाई भी क्या ईजाद किया है 
जीभ के नीचे दबावो 
और सो जाओ बेफिकर 
अब कल की कल देखेंगे 
छोटा पडने वाला घर 
किंतना बड़ा हो गया है
और 
छोटे से दिन हफ्ते जैसे हो गए है 
पर बीत जाता है हर दिन भी 
और घर के कोने में सिमट कर 
भूल जाती है बाहरी दीवारे ,कमरे 
आज भी बीत गया एक दिन 
और रीत गया जिंदगी से भी कुछ 
कही से बजी कोई पायल 
नही रात को एक बजे का भ्रम 
सो जाता हूँ 
ऐसे ही कल के इंतजार में अकेला ।
हा नितांत अकेला 
बस छत ,दीवारे और सन्नाटा 
ओढ़कर ।

रविवार, 14 मई 2023

घुमन्तू

आपने क्या ये नाम सुने है और इन लोगो को देखा है ? 
घुमन्तूआपने क्या ये नाम सुने है और इन लोगो को देखा है ? 
घुमन्तू, लोहा पीटना, खानाबदोश इत्यादि इत्यादि 
इन सभी के पास या तो घर नही होता 
या 
घर के चूल्हे जलाने का साधन नही होता 
पर 
कुछ ऐसे लोग भी होते है 
जिनके पास घर भी होता है 
और घर चलाने का साधन भी होता है 
पर
वो शामिल हो जाते है इन वर्गों में 
और बेचैनी से कभी यहा ,कभी वहाँ मंडराते रहते है 
ऐसे लोगो को क्या नाम दे ? 
शब्दो के चितेरे कोई नाम दे । लोहा पीटना, खानाबदोश इत्यादि इत्यादि 
इन सभी के पास या तो घर नही होता 
या 
घर के चूल्हे जलाने का साधन नही होता 
पर 
कुछ ऐसे लोग भी होते है 
जिनके पास घर भी होता है 
और घर चलाने का साधन भी होता है 
पर
वो शामिल हो जाते है इन वर्गों में 
और बेचैनी से कभी यहा ,कभी वहाँ मंडराते रहते है 
ऐसे लोगो को क्या नाम दे ? 
शब्दो के चितेरे कोई नाम दे ।

शुक्रवार, 12 मई 2023

सज़ा हुआ घर

सज़ा हुआ घर 
कितना अच्छा लगता है 
पर 
जब आओ कराते है 
मरम्मत और रंग रोगन 
और 
बिखर जाता है सब कुछ 
कितना बदसूरत लगने लगता है 
अपना ही घर 
ऐसे ही इन्सानो के चेहरे 
और चारित्र होते है 
जब तक ढके है 
तो क्या लगते है वाह 
पर 
ज्यो ही 
प्याज के छिलके की तरह 
उतरने लगती है परते 
और 
निकल आता है 
अंदर का सच 
कितना भयावह लगता है 
सब कुछ ।
किसी ने लिखा तो है 
कि 
हर आदमी मे होते है दो चार आदमी ।

बुधवार, 10 मई 2023

मौत और अकेलापन

मेरी कविता ,
इसे केवल कविता समझ कर ही पढे कृपया -

मौत और अकेलापन 
________________
मौत कितनी 
खूबसूरत चीज होती है 
हो जाता है 
सब कुछ शांत शांत 
गहरी नींद 
तनावमुक्त ,शांत शांत 
न किसी का लेना 
न किसी का देना 
कोई भाव ही नही 
कोई इच्छा ही नही 
न डर ,न भूख ,न छल 
न काम न क्रोध 
बस शांति ही शांति 
विश्राम ही विश्राम
कोई नही दिख रहा 
और सब देख रहे है 
न रोटी की चिंता 
न बेटे और बेटी की 
न घर की चिंता 
न बिजलो और पानी की 
न बैंक की चिंता 
न टैक्स जमा करने की 
न काम की चिंता 
और न किसी छुट्टी की 
न किसी खुशी की चिंता 
न किसी की नाराजगी की 
निर्विकार ,स्थूल 
हल्का हल्का सब कुछ 
देखो 
कितना सपाट हो गया है चेहरा 
कोई पढ़ नही पा रहा कुछ भी
किसी को 
गजब का तेज लग रहा है 
बहुत कुछ है खूबसूरत 
पर मौत से तो कम 
और मुझे तो 
मौत से भी ज्यादा अक्सर
मजेदार लगता है अकेलापन 
सन्नाटा ही सन्नाटा 
कोई आवाज ही नही 
खुद की सांसो के सिवाय 
कोई भी नही खुद के सिवाय 
पंखे के आवाज तो 
कभी कभी फोन की 
और 
हा दब गया रिमोट 
तो टी वी की भी आवाज 
तोड़ देती है सन्नाटा 
और 
झकझोर देती है अकेलेपन को
पर 
गजब का मुकाबला है 
मौत और अकेलेपन का 
हा
एक फर्क तो है दोनो में 
मौत खूबसूरत होती है 
पर अकेलापन बदसूरत 
मौत शांत होती है 
पर अकेलापन 
अंदर से विस्फोटक ।
मौत के बारे में 
लौट कर किसी ने नही बताया 
उसका अनुभव 
पर 
अकेलेपन को तो 
मैं जानता भी हैं 
और पहचानता भी हूँ 
अच्छी तरह ।
मौत का अंत अकेलापन है 
और 
अकेलेपन का अंत मौत । 
इसलिए 
मौत से डरो मत उसे प्यार करो 
अकेलेपन से हो सके तो भागो 
और 
इसे स्वीकारने से इनकार करो ।

नदी में तैरती लाशें

मेरी कविता 

नदी में तैरती लाशें 

जब लाइन लग गयी लाशों की
जब बोली लगने लगी लाशो की 
जब कंधे की क़ीमत हो गयी लाशो की 
जब लकड़ी ब्लैक होने लगी लाशो की 
जब टोकन मिलने लगे जलने को लाशो की 
तब
हाँ तब लाशें उठी और चल पड़ी 
नदियों की तरफ़ 
कि आग नही तो पानी ही सही 
जलेंगे नही तो कछुओं या किसी और 
जानवरों के भोजन के काम आ जाएँगे
आख़िर इनकी राख भी तो नदी में ही जाती है । 
वैसे भी कितना खर्च हो गया परिवारों का 
और खर्च को घर भी बिकवा दे क्या 
अपनो का 
और 
इन लाशो को तो अपने लेने ही नही आए 
लाश से रोग फैलता है 
पर लाश की सम्पत्ति और बैंक बैलेंस से नही 
इसलिए 
इन लाशों ने ख़ैरात से जलने से इनकार कर दिया 
और ख़ुद जाकर बह गयी नदी में 
किसी सरकार की कोई गलती नही 
गलती घर वाली की है 
की वो पैसे वाले क्यो नही 
और गलती लाशो की भी है 
की उसने अपनो को 
इतना कायर और स्वार्थी क्यो बनाया ।
नदी तो प्रतीक है इस व्यवस्था का 
और लाशें भारत की जनता का ।

सोमवार, 8 मई 2023

ईश्वर है भी या नही ?

ईश्वर है भी या नही ?

जिनके घर से 
कम हो जा रहे है लोग 
वो पूछ रहे है कि 
हमने क्या बुरा किया था 
या 
जाने वाले ने क्या किया था 
बता तो दो ईश्वर 
पर ईश्वर है मौन 
हजारो सालो से 
सब तो किया
ईश्वर को खुश करने को 
फिर भी इतने जुल्म 
तब सवाल पूछते है सब 
कौन सा ईश्वर  
जो कभी नही आया
किसी के भी पुकारे 
शायद आया हो किसी युग मे 
और 
पता नही अब है भी या नही 
होता तो क्या ऐसा होता 
होता तो क्या ये सब होता ।

शुक्रवार, 5 मई 2023

फ़्रीडम इज़ नाट फ़्री

#फ़्रीडम_इस_नाट_फ़्री —-

सत्ता ने कहा मीडिया से 
थोडा झुक जाओ 
पर कुछ घुटने के बल चलने लगे 
और 
आधिकतर तो लेट कर रेगने लगे ।
और 
इस तरह चौथा खम्भा लेटकर खुद 
सत्ता के रास्ते की पगडंडी बन गया ।
सत्ता ने कहा व्यव्स्थापिका से 
हद मे रहो 
और 
वो संगम की जमुना हो गयी 
और 
कार्यपालिका रूपी गंगा मे विलीन हो गयी
तीसरा खम्भा भी सरस्वती की तरह 
भीतर भीतर घुल-मिल रहा है 
अब सब खम्भो की जिम्मेदारी 
खुद जनता के कन्धो पर है 
क्योकी आज़ादी मुफ्त मे नही मिलती 
फ्रीडम इस नॉट फ़्री ।

गुरुवार, 4 मई 2023

बात चीत जारी है



#बातचीत जारी है ,
#निंदा जारी है ,
विशेस #दर्जा जरी है ,
#कवाब और #बिरयानी जरी है ,
#अदानी की #बिजली जारी है 
#सर #काटना जारी है ,
बातचीत के लिए बातचीत जारी है , 
अगली मुलाकात के लिए बातचीत जारी है ,
अगली मुलाकात के मुद्दे के लिए
 बातचीत जारी है 
सीमा पर गोलीबारी भी जारी है ,
सैनिको को मरना जारी है ,
मोदी से राजनाथ तक के बयान जारी है ,
जी हाँ सब जारी है |
कुछ होगा 
इन्तजार है २०१९ के चुनाव का | 
तब तक आप भी इन्तजार करिए 
और 
तब तक मरने दिए गरीबो के बच्चो को 
और 
भरने दीजिये अदानी का खजाना 
आने दीजिये शाल ,बिरयानी और कवाब | 
और 
उलझे रहिये #भारत_माता ,
#बन्दे_मातरम और ऐसे ही फालतू मामलों में 
अगले चुनाव में फिर खा लीजियेगा 
#धर्म की #अफीम 
और
हिन्दुस्तानी बन कर नहीं 
धर्म बन कर वोट डाल दीजियेगा | 
सब जारी है 
ये भी जारी रहने दीजिये |