सज़ा हुआ घर
कितना अच्छा लगता है
पर
जब आओ कराते है
मरम्मत और रंग रोगन
और
बिखर जाता है सब कुछ
कितना बदसूरत लगने लगता है
अपना ही घर
ऐसे ही इन्सानो के चेहरे
और चारित्र होते है
जब तक ढके है
तो क्या लगते है वाह
पर
ज्यो ही
प्याज के छिलके की तरह
उतरने लगती है परते
और
निकल आता है
अंदर का सच
कितना भयावह लगता है
सब कुछ ।
किसी ने लिखा तो है
कि
हर आदमी मे होते है दो चार आदमी ।
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