शुक्रवार, 22 अप्रैल 2016

पेड़ भी जड़ होता है ।

पेड़ भी जड़ होता है
पर अपनी जड़ो
और पत्तो के साथ
और कोई कोई
फल के भी साथ
वो देता है छाया
भरता है पेट
और सूख जाता है
तब भी
बन जाता है ईंधन
पर जब कोई इंसान
जड़ हो जाता है
तो
न बन पता है सहारा
न सम्बल
और न ही प्रेरणा ।
न छाया ,न फल ,न ईंधन
कितना बेकार होता है ।
ऐसा इंसा
और
मैं ऐसे कई इंसानो को
जानता हूँ
जो पेड़ से जलते है
और अपने आप में भी ।

गुरुवार, 21 अप्रैल 2016

कभी समन्दर के किनारे

कभी
समन्दर के किनारे
खड़े होकर
दूर देखा है आप ने
लगता है कि
कुछ ही दूर पर
आसमान मिल रहा है
समन्दर से
पर जब आगे बढ़ते है
नाव से या जहाज से
तो वो मिलन
और दूर चला जाता है
वैसी ही होती है
कुछ जिंदगियां
और कुछ के भविष्य
इच्छाये ,खुशियाँ और आशाएं ।
मैं भी
ताक रहा हूँ टुकुर टुकुर
दूर से दूर तक
बहुत दिनों से
और
भाग रहा हूँ लगातार
की
आसमान कहा छू लूंगा ।
और
या तो
आसमान छल कर गया
या
मेरा पुरुषार्थ ही जवाब दे गया
और
हाथ भी तो छोटे पड़ जाते है मेरे ।

इसीलिए आज बाजार में हूँ ।

सुनो सुनो सुनो ,
कोई मुझे भी खरीद लो
जी बिकौऊ हूँ मैं
जैसा भी हूँ
पर आज बाजार में हूँ
बाजार का युग है
इतना खोटा भी नहीं कि
मेरी कुछ भी कीमत न ही
बोली तो लगाओ
कही से तो शुरू करो
चलो तुम रोटी से शुरू करो
चुपड़ी नहीं रूखी ही सही
और तुम कपडे से
उतरन भी चलेगी
तुम नीद की जगह दोगे
पर नीद कौन देगा
पर बोलो ,जो चाहो बोलो
इतना सस्ता इमांन कहा मिलेगा
इतना सस्ता ज्ञान कहा मिलेगा
और
आज इंसान कहा मिलेगा
तो बताओ कौन खरीदेगा मुझे
जी हा
कसम खुदा की मैं बाजार में हूँ
खरीद रहे हो बेपनाह हुस्न
लोगो के इमांन
लोगो के रहनुमा
तो मुझमे क्या बुराई है
इस ईमान से डर लगता है
या फिर इंसान से डर लगता है
अरे नहीं
बिकाऊ है आज ये भी
कोई तो बोलो
मेरे इंसान और ईमान को
कोई तो सिक्को में तोलो
कोई नहीं बोलोगे
तो रो पडूंगा मैं बेबसी पर
फिर
आंसू तो बिलकूल नहीं खरीदोगे
अब हुस्न कहा से लाऊँ
मैं भी दल्ला हो सकता हूँ
ये कैसे समझाऊँ
या फिर ये बनी हुयी इमेज
मिटा के आऊँ
तो उसके लिए
किस लॉन्ड्री में जाऊं ।
कोई तो खरीद लो न मुझे ।
जी हां मैं आज बिकाऊ हूँ
और
इसीलिए आज बाजार में हूँ ।
और
बिकने वाले हर इश्तहार में हूँ ।

काफी दिनों से खुद से ही बात कर रहा हूँ या तो बात नहीं होती या लफ्ज नहीं होते ।

काफी दिनों से खुद से ही बात कर रहा हूँ
या तो बात नहीं होती या लफ्ज नहीं होते ।

मंगलवार, 19 अप्रैल 2016

तुमने खंजर छुपा के रखा था

मैं तो बस प्रेम से मिला तुमसे
तुमने खंजर छुपा के रखा था ।

चलो धूल डालते है

चलो धूल डालते है
कुछ विचारो पर
भावनाओ पर
रिश्तों पर
और ढक देते है
बहुत सी यादे ।
भूल जाते है वो कदम
जो हम साथ चले थे
लिखते है नयी इबारत
और नया भविष्य ।