रविवार, 12 नवंबर 2023

कहो राम तब क्यो आये थे


कहो राम तब क्यो आये थे
अब चुप होकर क्यो बैठे हो
बहुत थके हो तुम लंका से
या फिर क्यो रूठे रूठे हो
रूठे हो खुद से या कैकेयी से
या मंथरा से या अपनी माँ से
जो तुम्हरी खातिर लड़ी नही
और राजपाठ को अड़ी नही
यदि खुद से रूठे तो अच्छा है
ये  रूठना  फिर  सच्चा  है
फिर मर्यादित कैसे होते
ये सवाल भी बहुत बड़ा है 
तब तो केवल एक था रावण
अब रावण की फौज खड़ी हैं
तब तो थी  छोटी  सी लंका
अब की लंका बहुत बड़ी है
तब क्या सब बहुत बुरा था
अब क्या रामराज्य आ गया 
सोचो तब क्यो तुम आये थे
और अब क्यो उदासीन हो
आते तो तुम अब भी लेकिन
मंदिर मस्जिद पर आते हो
या  त्यौहार में आ जाते हो
या फिर प्रचार में आ जाते हो

क्या कमाल था वो पत्थर थी 
तुमने उसमे जान डाल दी
बहुत डरा था नाव लिए वो
वो नाव जो वही खड़ी थी 

दीपक बन जलते रहना है ।

कहा अकेला हूँ मैं देखो
सूरज चाँद सितारे  मेरे
चिड़ियों का कलरव है मेरा
धूप है मेरी धूल है मेरी
बादल मेरे बारिश मेरी
घर की गर वीरानी मेरी
तो सडंको के शोर भी मेरे
बाज़ारों की हलचल मेरी
और नाचता मोर भी मेरा
छत मेरी दीवारें मेरी
घर में जो है सारे मेरे
बातें मेरी और राते मेरी
वादे मेरे और यादें मेरी
और किसी को क्या चाहिए
इतना तो सब कुछ घेरे है
जीवन क्या है बस डेरा है
आज यहाँ है और कही कल
कुछ साँसों का बस फेरा है
सभी अकेले ही आते है
सभी अकेले ही जाते है
कौन अकेला नहीं यह पर
भीड़ में है पर बहुत अकेले
मैं अकेला घिरा हूँ कितना
इतना सब कुछ पास है मेरे
लोगों के जीवन में देखो
विकट अंधेरे बहुत अंधेरे
उन सबसे तो मैं अच्छा हूँ
जीवन को अब क्या चाहिए
थोड़ी ख़ुशियाँ थोड़ी साँसे
मैं तो अब भी एक बच्चा हूँ
जल्द बड़ा भी हो जाऊँगा
फिर से खड़ा भी हो जाऊँगा
कैसा अकेला कौन अकेला
दूर खड़ा अब मौन अकेला
मेरे गीत और मेरे ठहाके
दूर रुकेंगे कही पे जाके
तब तक तो चलते रहना है
दीपक बन जलते रहना है ।

अज्ञात से युद्ध

अज्ञात से युद्ध  ?

बम,मिसाइल ,गोलियां ,गोले 
और 
संगीन किसी को नहीं पहचानती है 
क्योंकि उनके दिल नही होता 
उनके दिमाग नही होता 
वो खुद से कुछ नही करती 
कोई और चलाता है इन्हे 
ये गुलाम है किसी दिमाग के 
ये गुलाम है किसी उंगली के 
पर इंसान चाहे किसी देश का हो 
चाहे कोई भाषा बोलता हो 
और 
चाहे जिस बिल्ले वाली वर्दी पहने हो 
उसके तो आंखे होती है 
दिल और दिमाग भी होता है 
फिर कैसे कहर बन टूट पड़ता है
दूसरे इंसान पर 
जिसे खुद जानता भी नहीं 
जिससे उसकी दुश्मनी भी नही ?
फिर कैसे चलनी कर देता है उसे 
कैसे घोप देता है संगीन 
या उड़ा देता है बम से
बिना विचलित हुए 
क्या नही दिखता सामने उसे 
अपना भाई या बेटा 
नही कर पाता है कल्पना 
एक उजड़े घर की 
एक विधवा पत्नी , टूटे मां बाप
और अनाथ बच्चों की
चाहे सामने वालो के हो 
या ख़ुद के 
कैसे इतना बेदर्द और क्रूर हो जाता है 
कोई भी हाड़ मांस का जीवित इंसान ? 
युद्ध में कोई नहीं जीतता 
सब केवल हारते है 
और बर्बाद हो जाते है मुल्क 
उससे ज्यादा इंसानियत
युद्ध जमीन पर नही 
औरत की  देह 
और 
बच्चो के जीवन पर लड़ा जाता है 
और अंत में खत्म हो जाता है युद्ध 
एक मेज पर चाय के साथ वार्ता से 
तो पहले ही क्यों न 
रख दी जाए ये मेज और चाय 
इंसान की मौत और युद्ध के बीच में ।
आइए मेज पर बात करे हर दिन हर वक्त ।

शनिवार, 11 नवंबर 2023

मेरी दीवाली

मन रही है दीवाली 
हर साल की तरह 
कम होते गए घर से लोग 
अब रह गए हम दो
लोगो के घरो में 
बने है पकवान 
मेरा बेटा भी होटल से 
लाया है पकवान 
लोगो के घरो में 
सजी है रंगोली 
मेरे बेटे ने भी 
कुछ रख दिया है जमीन पर 
लोगो के बच्चे और बड़े भी 
छोड़ रहे है पटाखे 
मैं बिस्तर पर पड़ा 
सुन रहा हूँ आवाजे 
और 
मेरा बेटा बाहर खड़ा 
देख रहा है सबको फोड़ते 
मेरे घर भी आई है मिठाई 
पर 
पता नहीं क्यों 
मिलने आने वालो की तादात 
घट जाती हैं बुरी तरह 
जब किसी पद पर नहीं होता हूँ मैं 
हमने खरीदा है कुम्हार के बनाये 
दिए और लक्ष्मी गणेश 
थोड़ी सी खील और बतासे भी 
ताकि इनको बनाने वालो की 
कुछ मदद हो जाये
और हार न जाये ये 
देश के दुश्मन चीन से 
और मन गयी 
मेरी और मेरे बेटे की भी दीवाली ।

बुधवार, 8 नवंबर 2023

दिए जलाओ खूब जलाओ



दिए जलाओ खूब जलाओ 
इतने जलाओ कि डूब जाओ 
और भूल जाओ भूख अपनी 
दर्द अपना औ चीख अपनी 
जहां भी मिले जगह कोई भी 
मंदिर कोई या नदी किनारा 
दिए जलाओ खूब जलाओ 
और हर बारी गिनते जाओ 
पिछली बारी जितने जले थे 
उससे ज़्यादा अब जलाओ 
नए नए कीर्तिमान बनाओ 
कैसी ग़रीबी कौन है भूखा 
कैसी बेबसी और बेकारी 
ये सब बाते बेमतलब की 
चकाचौंध में इन्हें भुलाओ 
दिए जलाओ खूब जलाओ 
सीमा पर जो शहीद हुए है 
वो सब है गरीब के बच्चे 
सुरसतिया की लाज लूटी 
या गौहरबानो उठा ली गयी 
पेड़ो पर लटके किसान हो 
या फ़ुटपाथो की आबादी 
इन सबसे तो आँख फेर लो 
धन्नासेठो को चमकाओ 
दिए जलाओ खूब जलाओ 
उसके घर में तेल नही है 
कल दिए से तेल वो लेगा 
और वो है पत्तों पर खाता 
कल दिए वो ले जाएगा 
ये भी तो एहसान बहुत है 
इन एहसानों को छपवाओ 
दिए जलाओ खूब जलाओ 
घर में अंधेरा है लाखो के 
उनको उजाला ख़ुश कर देगा 
पेट में जिनके आग जल रही 
उनके पेटो को भर देगा 
जो क़िस्मत में वही हो रहा 
उन सबको ये पाठ पढ़ाओ 
राम जी अग़ला जन्म बनाए 
ऐसा भाव उनमें  जगाओ 
दिए जलाओ खूब जलाओ ।