बुधवार, 27 जनवरी 2021

वो हमको मंज़ूर नही

गाना चाहे तो गाइये और मिलकर समूह मे गाइये-

गांधी पर गोली चलवाया वो हमको मंजूर नही 
अंग्रेजो के तलवे चाटे देशभक्तो को जेल भिजवाया वो हमको मंजूर नही 
अंगेजो से माफी मांगी 
अंग्रेजो से पेंशन खाया वो हमको मंजूर नही 
आज़ादी मंजूर न जिनको वो हमको मंजूर नही 
जिसने देश का झन्डा जलाया वो हमको मंजूर नही 
सालो झन्डा ना फहराया वो हमको मंजूर नही 
गाय के नाम पे था मरवाया वो हमको मंजूर नही 
राम के नाम पे दंगा कराया वो हमको मंजूर नही 
आग लगायी घर जलवाया वो हमको मंजूर नही 
तलवारो पर बच्चे उछाले कांच पर बहनो को नचवाया वो हमको मंजूर नही 
श्रीराम का नारा लगाकर बहनो के कपडे नुचवाया वो हमको मंजूर 
इज्जत लूटी और जलाया वो हमको मंजूर नही 
संविधान को नही मानता वो हमको मंजूर नही 
लोकतंत्र को नही जानता वो हमको मंजूर नही 
बेटे बेटी को पिटवाये वो हमको मंजूर नही 
रोटी छीने सब बिकवाये वो हमको मंजूर नही 
नफरत का करोबार फैलाये वो हमको मंजूर नही 
सीमा पर बेटे मरवाए वो हमको मंजूर 
दुश्मन के घर जाये बिना बुलाये वो हमको मंजूर नही 
बिरयानी खाए साड़ी पहुचाये वो हमको मंजूर 
फिर अपने बच्चे मरवाए वो हमको मंजूर नही 
अपनो पे इतने केस लगाये वो हमको मंजूर नही 
आओ मिलकर इन्हे भगाये ये हमको मंजूर 
आओ मिल आवाज लगाये ये हमको मंजूर नही 
फासीवाद से पिण्ड छुड़ाए ये हमको मंजूर नही ।

मंगलवार, 12 जनवरी 2021

मिल गया चुनांव को राशन

बस रँगते जाओ 
अपनी सोच ,
अपने कर्म , 
अपनी नाक़ामियाँ, 
अपनी अयोग्यता 
और 
दृष्टिहीनता 
और 
उसके नीचे सुलगाते जाओ 
आग नफरत की , 
दंगो की ,चीखों की ।
बस हो गया शासन 
और 
मिल गया चुनांव को राशन 
रंग ही लोकतन्त्र ,
रंग ही संविधान
रंग ही इंसानियत
रंग ही रोटी 
रंग ही कपड़ा 
और 
रंग ही मकान 
और क्या ?

जंग जारी है जमीन की कमीन से

अपनी अपनी किस्मत 
कि 
जिस किसी को गड्ढे से 
या जमीन से 
और 
अंनपहचानेपन से उठा कर 
उंगली पकड़ कर 
कही बैठा दिया 
वही खंजर छुपा कर बैठ गया 
पीठ पर वार करने को 
उसी ने कोशिश की 
कि 
अस्तित्व ही खत्म कर दे 
हमारा 
कितने कमीन मा बाप
और             
शिक्षक रहे होगे 
जिन्होने 
ये शिक्षा दी होगी इन्हे 
पता नही 
कही पहला दाव 
इन्होने अपने मा बाप
और                
शिक्षक पर ही 
आजमाया होगा 
तब 
इतना कमीन बनने
का हुनर आया होगा 
मुझे इनसे घाव खाने का 
इतना चस्का लग गया है 
कि 
मैं खुद को बदलने को तैयार नही 
और 
ये लोग भी कमीनपने की नाव से 
उतरने को तैयार नही 
जंग जारी है लगातार 
कमीन मे और जमीन मे 
दोगलेपन मे और जमीर मे 
मुझे पता है 
मैं फिर हार जाऊंगा 
इनसे 
पर मेरी जिद है 
की 
एक दिन इन्हे हराउंगा ।
शायद 
तब तक दुनिया से
कूच कर जाऊंगा ।

मंगलवार, 5 जनवरी 2021

मिल गया चुनांव को राशन

बस रँगते जाओ 
अपनी सोच ,
अपने कर्म , 
अपनी नाक़ामियाँ, 
अपनी अयोग्यता 
और 
दृष्टिहीनता 
और 
उसके नीचे सुलगाते जाओ 
आग नफरत की , 
दंगो की ,चीखों की ।
बस हो गया शासन 
और 
मिल गया चुनांव को राशन 
रंग ही लोकतन्त्र ,
रंग ही संविधान
रंग ही इंसानियत
रंग ही रोटी 
रंग ही कपड़ा 
और 
रंग ही मकान 
और क्या ?

रविवार, 3 जनवरी 2021

बेचारा हिरन

कभी कभी 
कोई दर्द
अचानक 
आप को
कितना 
बेचैन कर देता है 
खाने भी नही देता
और 
सोने भी नही देता 
और
कितना जगा देता है 
रात तक 
या 
पूरी रात 
और 
बेचारे निरीह 
उस
हिरन की तरह 
जिसे
बाण लगा हो 
या लगी हो गोली 
और 
वो 
पलट कर 
उसी को 
चाटता है 
अज्ञानता से
बिना जाने 
की 
ये 
उसकी मौत है 
बेचारा हिरन 
और 
बेचारा
अगर 
भावुक इंसान हो 
तो बोली
गोली से ज्यादा 
लगती है न 
कितना दर्द देती है
सहा भी नही जाता 
रहा भी नही जाता ।
खैर 
वेचारा हिरन ।
और बेचारा 
??..????