रविवार, 31 मार्च 2024

रेगिस्तान का हिरन

वो रेगिस्तान का हिरन देखा है क्या 
लगातार भागता और फिर दम तोड़ता
उसे हर थोड़ी दूर पानी दिख रहा था 
और पानी और थोड़ी दूर हो जा रहा था 
कई प्रेमी भी  ऐसा ही हिरन होते है 
और उनका प्यार रेगिस्तान का पानी । 

नाखून

नाखून

औरत को देखते ही
आँखों में नाखून उगना कब से शुरू हुआ?
जब हम असभ्य थे
या जब सभ्य हो गए!

औरत को देखते ही
उसे घायल कर देने की प्रवृत्ति कब से आयी?
जब हमारे पास शब्द नहीं थे
या 
जब हमने भाषा गढ़ ली!

औरत को देखते ही
उसमें प्रवेश करने की उत्कंठा
कब से हिलोरें मारने लगी?
जब हम कुछ नहीं जानते थे
या 
जबसे हमने ईश्वर गढ़ लिया !

औरत को देखते ही
उसपर क़ाबिज़ होने की इच्छा
कब से उत्पन्न हुई?
किसी बर्बरता को देखकर 
या जबसे हमने बर्बरता का सामान्यीकरण कर लिया


यह सब त्रासदियाँ हैं
मनुष्यता के पक्ष में लड़ने के लिए
इन त्रासदियों को ख़त्म करने के लिए
नए औज़ार बनाने होंगे

- डॉ. सी. पी. राय

रविवार, 24 मार्च 2024

आहट सुनाई पड़ रही है आपातकाल की

आहट सुनाई पड़ रही है ?
आपातकाल की 
या समय पूर्व चुनाव की 
और 
किसी भी तरह ,किसी भी हालत में 
जीत ,जीत और केवल जीत 
ताकि फिर सब स्थाई हो सके
मनमाना पन हो या तानाशाही 
कोई सामने नहीं हो 
ना विपक्ष ,न संविधान और लोकतंत्र 
महात्मा से लेकर शहीदे आजम तक 
नेता जी से लेकर बिस्मिल तक 
सब की आत्माएं 
बस टुकुर टुकुर ताक रही है 
पर आंखो में आसू के कारण 
कुछ साफ साफ दिख नही रहा है 
तो एक दूसरे से पूछ रहे है 
कि कुछ देखा क्या कुछ सुना क्या 
अपने भारत का हाल 
पर जवाब में सिर्फ सन्नाटा और हिचकी ।

शुक्रवार, 22 मार्च 2024

मेरे ओठ इस कदर क्यों सिये गए है ।

जब कोई मेरे घाव को कुरेदता है न
मुझे बहुत दर्द होता है 
कोई मेरे घाव को सहलाता भी है 
तो लगता है कि कुरेद रहा है
हर बार मेरा घाव और गहरा हो जाता है 
इसलिए मुझे मेरे हाल पर ही छोड़ दो 
न कुरेदो , न सहलाओ 
बस कोई इतना बताओ 
इतने घाव मुझे क्यों दिए गए है 
मुझे चीखने से भी क्यों रोका गया 
मेरे ओठ इस कदर क्यों सिये गए है ।

सोमवार, 11 मार्च 2024

वो सब आगे निकल गए

वो सब आगे निकल गए 

जो जो काफ़ी दिन साथ चले 
गलबहिया करते हुए
एक दिन अचानक थोड़ा ठिठके
उनके पीछे होते ही 
मैं लहूलुहान हो गया 
छटपटाया और गिर गया 
और मुझे तड़पता छोड़ 
वो तेजी से आगे निकल गए 
ये कहानी आख़िरी कभी नहीं हुयी 
और गिनती अब तक नहीं रुकी ।

शनिवार, 9 मार्च 2024

क्या अभी भी बच जाएगा हिंदुस्तान ?

क्या अभी भी बच जाएगा हिंदुस्तान ? 

तब भी शोर था पर नारो का 
सार्थक नारो का 
कही इंकलाब जिंदाबाद
कही महात्मा गांधी जिंदाबाद 
स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है
तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा 
करो या मरो 
अंग्रेजो भारत छोड़ो 
दुश्मन स्पष्ट था और उद्देश्य भी 
फिर अचानक एक शोर हुआ 
ठाय ठाय ठाय
और
फिर देश में गूज उठा नारा 
महात्मा गांधी अमर रहे 
थर्रा गया भारत और मानवता 
पर सम्हाल कर चलता रहा भारत 
और 
पहुंच गया ऊंचाइयों पर 
आज फिर शोर है 
आजादी की लड़ाई का विरोध करने वालों का शोर 
कर्कश शोर क्रोधित घृणा लिए 
जय श्रीराम जय श्रीराम 
गोडसे जिंदाबाद फासीवाद जिंदाबाद 
नफरत भय आशंका से घिरा देश 
नारो नारो में कितना फर्क होता है ।
अंग्रेजो के आतताई शासन से तो बच निकला 
पर क्या अभी भी बच जाएगा हिंदुस्तान ?

शुक्रवार, 1 मार्च 2024

धुप अन्धेरा है

धुप अन्धेरा है 
चारो ओर 
जमीन से आसमान तक 
क्या आसमान के परे भी
कुछ होगा 
जहा कुछ रोशनी होगी 
हमारे हिस्से की भी ।