वो सब आगे निकल गए
जो जो काफ़ी दिन साथ चले
गलबहिया करते हुए
एक दिन अचानक थोड़ा ठिठके
उनके पीछे होते ही
मैं लहूलुहान हो गया
छटपटाया और गिर गया
और मुझे तड़पता छोड़
वो तेजी से आगे निकल गए
ये कहानी आख़िरी कभी नहीं हुयी
और गिनती अब तक नहीं रुकी ।
पहचान उन सभी का मंच है जो जिंदगी को जीते नहीं जीने का निर्वाह करते है .वे उन लोगो में नहीं है जिन्हें जीवन मिला है या जीने का मकसद उनके साथ रहता है .बस जीने और घिसटने के बीच दिल वालो की कलम से और दिल से जो निकल जाता है वही कविता है .पहली कविता भी तों आंसू से निकली थी .आंसू अपने दर्द के हो या समाज के ,वे निकलेंगे तों कविता भी निकलेगी और वही दिलवालो की ;पहचान ;है
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