शुक्रवार, 31 जुलाई 2020

शनिवार, 25 जुलाई 2020

कुम्भकरण

लोकतंत्र खत्म हो जाये
हमको क्या 
संविधान खत्म हो जाये
हमको क्या  
तानाशाही आ जाये
हमको क्या 
जुबान सिल दिया जाये
हमको क्या 
हम भारत है 
पहले भी गुलाम हो गए
क्या फर्क पडा 
आज़ादी के लिए जो लड़े मरे
हमको क्या 
हमे बस थोडा सा खाना
थोडे से कपडे 
और 
एक कमरा मिल जाये 
और 
हम टीवी देखते खाते
सोते उसी मे दफन हो जाये
अभी हम सो रहे है
आवाज देकर 
जगावो मत हमे
हम इन्सांन नही कुम्भकरण है ।

शुक्रवार, 24 जुलाई 2020

बन जाऊंगा मैं शुतुरमुर्ग

चलो अब मैं चुप हो जाता हूँ 
और
भींच लेता हूँ ओठो को 
चाहे खून क्यो न निकल पडे 
कुछ भी हो जाये मेरे सामने 
आंख मूद लूँगा मैं कस कर 
चाहे फिर दुखती रहे देर तक 
या दिखना कम क्यो न हो जाये 
कुछ भी हो हत्या अपहरण 
बलत्कार भ्रष्टचार 
हो जाये चीर हरण व्यव्स्था का 
या आ जाये तानाशाही 
मिटा दिया जाये संविधान 
पर 
मैं कुछ नही लिखूंगा 
कुछ नही बोलूंगा 
बन जाऊंगा मैं शुतुरमुर्ग 
और 
शामिल हो जाऊंगा उन्ही मे 
निकाल कर फेंक दूंगा अपनी रीढ 
दफना दूंगा दिल दिमाग 
और चिंतन ।

बुधवार, 22 जुलाई 2020

बारिश

मेरी कविता  ——

बारिश

बारिश  नहीं आयी
उफ़्फ़ कितनी गरमी है 
सूरज जला देगा क्या 
ये बारिश क्या करेगी 
आफ़त बन कर आयी है 
सब कुछ बहा देगी क्या 
देखो गिर गए 
कितनो के कच्चे घर 
और 
झोपड़ियाँ भी जवाब दे गयी 
अबकी बारिश समय पर आयी 
और उतनी ही आयी 
की अबकी खेत सोना उगलेंगे 
अभी बारिश तो आफ़त है 
भीग गया खेत और खलिहानों में सब 
अब साल कैसे बीतेगा 
कैसे होगी उसकी पढ़ाई और दवाई 
कैसे ब्याहेगा वो बिटिया 
बारिश आयी स्कूल की छुट्टी 
छप्प छप्प करते वो पानी में 
वो काग़ज़ की नाव बहाते 
वो बचपन कितना प्यारा लगता है 
उससे पूछो जो अभी है ब्याही 
और पति सीमा पर बैठा 
उन दोनो के मन की सोचो 
और 
वो दोनो भीग रहे है छत पर 
दोनो देख रहे दोनो को 
भीगा आँचल भीगा यौवन 
दोनो को है कितना जलाए 
वो मछरदानी पर प्लास्टिक बिछा रही है 
बालटी भगौने सब बिस्तर पर सज़ा रही है 
ख़ुद बैठी है पर बच्चों को 
इस कोने और उस कोने कर 
वो बारिश से बचा रही है 
पूरी रात नहीं वो सोयी 
सब झेला 
पर कभी नहीं क़िस्मत पर रोयी 
बारिश का मतलब उससे पूछो 
जो पूरा घर अब सुखा रही है 
बारिश तो अब ख़त्म हो गयी 
चरो तरफ हरियाली छायी

फूलों से अब लदी डालियाँ 
सबको ही अच्छी लगती है 
भूल गए सब क्या झेला था 
वो अच्छा या बहुत बुरा था 
फिर जीवन पटरी पर आया  
उफ़्फ़ 
ये बारिश कैसी बारिश ।

शनिवार, 18 जुलाई 2020

वो क्या कहलाता है ।

जो दिन भर हंसी 
चेहरे पर चिपकाता है 
अकेले मे रात को रोता 
फिर 
सुबह से मुस्कराता है 
वो भी एक इन्सा है 
जो खुद को 
और 
अपनो को बहलाता है ।
क्या कोई जानता है 
कि 
वो क्या कहलाता है ।

शुक्रवार, 10 जुलाई 2020

एकाकीपन की तरफ ।

मैं भीड़ में गुम हो जाना चाहता हूँ 
पर 
भीड़ और मेरे बीच इतनी दूरी है 
कि 
न मेरी आवाज उसे सुनाई पड़ती है 
और न मैं उसे दिखाई पड़ता हूँ 
मुझे भी नही दीखती है वो भीड़ 
बस सुनाई पड़ती है कानो में आवाज़ 
कही दूर से अपुष्ट ,अस्पष्ट 
और 
में ढूढने लगता हूँ उसे पागल जैसे 
पर 
भीड़ ने लगातार दूरी को कायम रखा है 
और मुझे धलेक रही है लगातार 
एकाकीपन की तरफ ।

रविवार, 5 जुलाई 2020

ऐसे चित्रो से डर लगता है

ऐसे चित्रो से डर लगता है
  
ऐसे ही बहुत से चित्र 
तो देखे थे हमने 
तालिबान के यहाँ के 
इसी रंग के कपड़ो मे 
जिनकी गर्दने रेत रहे थे 
ऐसे ही मासूम बच्चे 
और 
वो सब मुल्क 
जहा ऐसे चित्र दिखे
चीथड़ों से दिख रहे है 
वीरान खंडहर वाले भुतहा 
भागते हुये लोग
चीखते हुये लोग 
कटते और धमाको मे
उडते हुये लोग 
चारो तरफ 
शोर ही शोर 
धुवा ही धुवा 
लाशे ही लाशे 
और खंडहर मे 
तब्दील हो गए 
वो खूबसूरत शहर 
लाशो मे तब्दील वो
खूबसूरत शक्ले 
चीखो और धमाको मे तब्दील 
वो अच्छी आवाजे 
सचमुच 
बहुत डर लगता है 
ऐसे चित्रो से 
वो चाहे जिसके हो 
और चाहे जहा
चाहे जिसने खीचे हो
मत बनाओ ऐसे चित्र 
इन बच्चो के हाथो मे
थमाओ किताबे 
खेलने की चीजे 
और 
बजाने को वाद्ययंत्र 
लोहे से बनी ये किताबे 
इन्हे मत पढावो
लोहे के ये वाद्ययंत्र 
इनसे मत बजवावो
इन्हे इन्सांन ही रहने दो 
इन्हे मौत बेचने वाला 
शैतान मत बनाओ 
बहुत डर लगाता है 
इन चित्रो से अब ।
नोट -( यह तस्वीर कही की हो और किसी की हो बस उसका उपयोग अपनी बात समझाने के लिए किया गया है )