आहट सुनाई पड़ रही है ?
आपातकाल की
या समय पूर्व चुनाव की
और
किसी भी तरह ,किसी भी हालत में
जीत ,जीत और केवल जीत
ताकि फिर सब स्थाई हो सके
मनमाना पन हो या तानाशाही
कोई सामने नहीं हो
ना विपक्ष ,न संविधान और लोकतंत्र
महात्मा से लेकर शहीदे आजम तक
नेता जी से लेकर बिस्मिल तक
सब की आत्माएं
बस टुकुर टुकुर ताक रही है
पर आंखो में आसू के कारण
कुछ साफ साफ दिख नही रहा है
तो एक दूसरे से पूछ रहे है
कि कुछ देखा क्या कुछ सुना क्या
अपने भारत का हाल
पर जवाब में सिर्फ सन्नाटा और हिचकी ।
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