शनिवार, 14 अक्तूबर 2023

सूरज क्या तुम सत्ता हो

सूरज तुम दिल्ली की सत्ता 
आये थे अहंकार में चूर 
गर्म लावा अहंकार का 
सब रहते है शांत
सहते है ताप तुमारा
नही मिलाते आंखे तुमसे
इंतजार करते है
जब ठंडे हो जागोगे तुम 
अब तुम्हारी शाम हो गई 
अब स्वीकार करो चुनौती 
आंख मिलाओ अब तुम सबसे
क्यों छुपने को भाग रहे हो 
डूब रहे हो तुम पश्चिम में 
फिर वो अहंकार था कैसा 
जो उठता है वही डूबता
क्या ये तुमको पता नही था 
इसलिए मदमस्त बहुत थे 
देखो अब तुम अस्त हो रहे 
डूब रहे हो किसी खोह में 
फिर जब आना सोच कर आना 
तुम भी अंतिम सत्य नही हो ।

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