सूरज तुम दिल्ली की सत्ता
आये थे अहंकार में चूर
गर्म लावा अहंकार का
सब रहते है शांत
सहते है ताप तुमारा
नही मिलाते आंखे तुमसे
इंतजार करते है
जब ठंडे हो जागोगे तुम
अब तुम्हारी शाम हो गई
अब स्वीकार करो चुनौती
आंख मिलाओ अब तुम सबसे
क्यों छुपने को भाग रहे हो
डूब रहे हो तुम पश्चिम में
फिर वो अहंकार था कैसा
जो उठता है वही डूबता
क्या ये तुमको पता नही था
इसलिए मदमस्त बहुत थे
देखो अब तुम अस्त हो रहे
डूब रहे हो किसी खोह में
फिर जब आना सोच कर आना
तुम भी अंतिम सत्य नही हो ।
कोई टिप्पणी नहीं :
एक टिप्पणी भेजें