मैं लिखना चाहता हूं
फिलिस्तीन और इजराइल पर
मैं लिखना चाहता हूं
यूक्रेन और रूस पर
मैं लिखना चाहता हूं
मणिपुर और मेवात पर
मैं लिखना चाहता हूं
दुनिया की हर हिंसा और मौत पर
अपने आंसुओ कि स्याही बना कर
लिखना चाहता हूं मैं
पर ये क्या हिंसा सोचते ही
आंसू लाल हो गए सुर्ख लाल
मेरे हाथ कांपने लगे ओठ लरजने लगे
गिर गई कलम मेरे हाथ से
और गिर कर बंदूक बन गई
नही उठा रहा हूं ये बंदूक मैं
कि
मेरे भीतर का भी जानवर न जाग जाए
नही लिख रहा में अब कुछ भी
और आंसू भी तो गायब है
कौन मेरा कोई सगा मरा है
मैं क्यों परवाह करू इन सबकी
जब मौत मेरे दरवाजे पर दस्तक देगी
तब उठा लूंगा मैं ये कलम या बंदूक ।
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