बंद दरवाज़े के पीछे
छिपे होते है कितने राज
कितनी सिसकिया
और
कितनी चीखे
कुछ तो
निकल ही नही पाती है
बस घुट कर रह जाती है
कहने को तो
सब अपने ही होते है
पर
कुछ ऊर्जा देते है
और
देते है जीने की तमन्ना
और
कुछ गला घोट कर
मार देते है
या
बना देते है मरने जैसा
बाहर निकल कर
कितना नकली हंसी हँसते है लोग
और
कितनी खोखली होती है उनकी मुस्कराहट
दर असल इस हंसी मे
एक चीख होती है
बहुत डरावनी सी
और
मुस्कराहट बिल्कुल वही
जो
फाँसी पर चढ़ने वाले के
चेहरे पर होती है
रिश्ते भी कितने
बोझिल हो जाते है
जब कोई खुद को
बोझ बना लेता है
अपने ही ऐतिहासिक
कामो से
और
फिर अपने ही वर्तमान से
क्यो नही जीवन उतना ही हो
की
आप ऐश करे अपनी मर्जी का
और
फिर छोड दे शरीर
उसके बाद जीवन का
मतलब भी क्या है
जब तक आप जरूरी हो
दूनिया और समाज के लिए जिए
या अपने लिए
वर्ना क्यो शर्मिंदा हो रोज
बेहतर है कि आप फिर चले ।
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