शुक्रवार, 30 अप्रैल 2021

बेहतर है क़ि आप फिर चले

बंद दरवाज़े के पीछे 
छिपे होते है कितने राज 
कितनी सिसकिया 
और 
कितनी चीखे 
कुछ तो 
निकल ही नही पाती है 
बस घुट कर रह जाती है 
कहने को तो 
सब अपने ही होते है 
पर 
कुछ ऊर्जा देते है 
और 
देते है जीने की तमन्ना 
और 
कुछ गला घोट कर 
मार देते है 
या 
बना देते है मरने जैसा 
बाहर निकल कर 
कितना नकली हंसी हँसते है लोग 
और 
कितनी खोखली होती है उनकी मुस्कराहट 
दर असल इस हंसी मे
एक चीख होती है 
बहुत डरावनी सी             
और 
मुस्कराहट बिल्कुल वही              
जो 
फाँसी पर चढ़ने वाले के
चेहरे पर होती है 
रिश्ते भी कितने 
बोझिल हो जाते है 
जब कोई खुद को
बोझ बना लेता है 
अपने ही ऐतिहासिक
कामो से 
और 
फिर अपने ही वर्तमान से      
क्यो नही जीवन उतना ही हो 
की 
आप ऐश करे अपनी मर्जी का 
और 
फिर छोड दे शरीर 
उसके बाद जीवन का
मतलब भी क्या है 
जब तक आप जरूरी हो
दूनिया और समाज के लिए जिए 
या अपने लिए 
वर्ना क्यो शर्मिंदा हो रोज 
बेहतर है कि आप फिर चले ।

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