लोग कल रात दिए
और
मोमबत्तियां जलाएंगे
पटाके भी चलाएंगे
और
कुछ बच्चे
परसो सुबह उठ कर
बची मोबत्तियाँ , दिए
और
बिना जले पटाके बीनेगे
जहाँ काम करते होंगे
उनके माँ बाप
उनको वहाँ से मिलेगा
खील बतासा मिठाईयां
कपड़े
और
इनाम में कुछ पैसे भी
मालिक के
दिल के बड़प्पन के अनुसार
और
दीपावली के अगले दिन होगी
एक बड़ी आबादी की दीवाली
कल तो
ये बच्चे
बस टुकुर टुकुर ताकेंगे
किसी
दूसरी दुनिया के लोगो
का वैभव
उनके घरो का उजाला
उनकी धमक
और पटाको कि चमक
उनके घर आते जाते डिब्बे
और सूंघेगे
उनके घर की
रसोई से निकलती
पकवानों की खुशबू
जो उसकी दुनिया मे
नही होती ।
और
बीत जाएगी दीपावली
दो दुनिया एक बार
फिर स्थापित कर
और
सब का उत्थान
और
संघर्ष भुला देगा
कि
कल क्या हुआ था ।
यही समाज की
बनावटी सतत यात्रा हैं
जिसमें
बहा जा रहा है समाज
न जाने कितनी सदियों से
क्या कभी दूरी मिट पाएगी
ये दो दिन की
और
दो तरह की दीपवाली की ?
कोई टिप्पणी नहीं :
एक टिप्पणी भेजें