ये समंदर का किनारा
रेत है और कुछ नहीं
और
पानी हां पानी भी बहुत है
प्यास है खूब प्यास
पर पी सकते नहीं है ।
किस लिए फिर
इसकी चाहत
क्या मिलेगा
इन लहरों को गिनकर
या
इनसे टकरा कर
क्या मिलता है
इस रेत से दिल लगाकर
क्यों जाते है हम
इतनी दूर दूर
बस ये रेत देखने
लहरे गिनने
या
लहरों में गिर जाने को
मुझको तो
कुछ समझ न आया
सब माया है केवल माया ।
ये किनारा ,ये लहरे औ ये पानी
जो खारा है
आखो के पानी से भी क्या
ये बालू कितनी निर्मम है
मेरे जीवन से भी क्या ।
ये समन्दर का किनारा
रेत है और कुछ नहीं ।
पहचान उन सभी का मंच है जो जिंदगी को जीते नहीं जीने का निर्वाह करते है .वे उन लोगो में नहीं है जिन्हें जीवन मिला है या जीने का मकसद उनके साथ रहता है .बस जीने और घिसटने के बीच दिल वालो की कलम से और दिल से जो निकल जाता है वही कविता है .पहली कविता भी तों आंसू से निकली थी .आंसू अपने दर्द के हो या समाज के ,वे निकलेंगे तों कविता भी निकलेगी और वही दिलवालो की ;पहचान ;है
गुरुवार, 18 अक्तूबर 2018
ये समन्दर का किनारा रेत है और कुछ नहीं ।
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