सोमवार, 22 जनवरी 2024

जानता हूं तुम मुझे नही वोट को ढूंढ रहे हो

चारो तरफ है कानफोडू शोर
कि राम आयेंगे राम आयेंगे 
राम है हतप्रभ की कहा गया मैं
मैं तो हूं कण कण में 
शबरी के बेर में केवट की नाव में 
पत्थर बनी अहिल्या में 
ये कलयुग वाले मुझे कहा ढूंढ रहे है 
सब जगह ढूंढ रहे है शोर मचा कर 
बस नही ढूंढ रहे है अपने मन में 
क्योंकि मन आइना होता है
जो शर्मिंदा कर सकता है
भाई से मुकदमा लड़ रहे भक्तो को
अपनी सीता को घसीटते हुए भक्तो को 
अहिल्याओ से बलात्कार करते भक्तो को 
शबरी और केवट की उपेक्षा करते भक्तो को 
मिलावट करते ,जहर बेचते 
मुंनाफाखोरी करते भक्तो को 
बच्चियों को देख कर 
आंख में नाखून उगा लेने वाले भक्तो को
अरे मूर्खो मैं तुम्हे कभी नही मिलूंगा 
मैं तो महल में नही जंगल में हूं
शबरी और केवट की झोपड़ी में हूं ।
महल मुझे रास नहीं आता है मेरा दम घुटता है 
और तुम मेरा दम घोट देना चाहते हो 
और चाहते हो कि में तुम्हे मिल जाऊं 
मैं जानता हूं तुम मुझे नही वोट को ढूंढ रहे हो ।।

कोई टिप्पणी नहीं :

एक टिप्पणी भेजें