चारो तरफ है कानफोडू शोर
कि राम आयेंगे राम आयेंगे
राम है हतप्रभ की कहा गया मैं
मैं तो हूं कण कण में
शबरी के बेर में केवट की नाव में
पत्थर बनी अहिल्या में
ये कलयुग वाले मुझे कहा ढूंढ रहे है
सब जगह ढूंढ रहे है शोर मचा कर
बस नही ढूंढ रहे है अपने मन में
क्योंकि मन आइना होता है
जो शर्मिंदा कर सकता है
भाई से मुकदमा लड़ रहे भक्तो को
अपनी सीता को घसीटते हुए भक्तो को
अहिल्याओ से बलात्कार करते भक्तो को
शबरी और केवट की उपेक्षा करते भक्तो को
मिलावट करते ,जहर बेचते
मुंनाफाखोरी करते भक्तो को
बच्चियों को देख कर
आंख में नाखून उगा लेने वाले भक्तो को
अरे मूर्खो मैं तुम्हे कभी नही मिलूंगा
मैं तो महल में नही जंगल में हूं
शबरी और केवट की झोपड़ी में हूं ।
महल मुझे रास नहीं आता है मेरा दम घुटता है
और तुम मेरा दम घोट देना चाहते हो
और चाहते हो कि में तुम्हे मिल जाऊं
मैं जानता हूं तुम मुझे नही वोट को ढूंढ रहे हो ।।
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