गुरुवार, 31 जनवरी 2013

मेरा अपना दोस्त ही क्यों न लौटा देते

कितने बदकिस्मत होते है वे
जिनका कोई साथी नहीं होता
उन गिने चुने लोगो में एक मै भी
कभी कोई साथी नहीं मिला मुझे
जब छोटा था तो
गरीब था, इसलिए अमीर नहीं बने
जो गरीब थे, वे अमीर समझ कर
साथी नहीं बनते थे
कितनी दोहरी जिंदगी थी मेरी
मैंने गरीब को दिखाया अपना
बिना जूतों वाला पैर स्कूल में
पर उसने विश्वास नहीं किया
अमीर को दिखाया, पिता का नाम
पर जेब देख कर, वो नहीं माना
इस तरह, मेरा कोई दोस्त नहीं बना
समाज व्यवस्था में, एक दोस्त बना
व्यवस्था की मजबूरी के कारण
वो मेरी पत्नी थी
पर जिसकी किस्मत में, दोस्त न हो
उसे पत्नी दोस्त भी क्यों और
ईश्वर ने छीन लिया, ये दोस्त भी
बिना दोस्त के जिंदगी क्या
पर सवाल तो अपनी जगह है की
मेरा कोई दोस्त नहीं है 
नकली दोस्तों
मै जनता हूँ की, मै बहुत अकेला हूँ
अपनों की भीड़ में भी
मेरा अपना दोस्त ही, क्यों न लौटा देते
जैसा भी था ,पर मुझे तो प्यारा था ।

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