गुरुवार, 27 जुलाई 2023

किस-किस को अब शीश झुकाना पड़ता है,

किस-किस को अब शीश झुकाना पड़ता है, 
दिल पर कितना बोझ उठाना पड़ता है 
काम नहीं चलता अब दीप जलाने से, 
हर पत्त्थर को भोग लगाना पड़ता है 
रूह बहुत दुख पाती इस जीने से, 
यारो जीते जी मर जाना पड़ता है. 
मौज उडाते हैं राजा के अधिकारी, 
पर जनता को कर्ज़ चुकाना पड़ता है 
हमने भी देखे हैं रंग सियासत के, 
भाई सबका साथ निभाना पड़ता है ।

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