हार गये
कोई बात नहीं
थोड़ी नीद सो लो
फिर
पकौड़े बनावावो
और
अच्छी सी चाय
उसमे हार डाल दो
और फिर पी जाओ
परशुराम,विष्णू का
मंदिर बनाओ
काशी जाओ जल चढाओ
गांधी लोहिया जेपी से
मुह छुपाओ
अब
जय श्री राम का नारा
उनसे ज्यादा जोर से लगाओ ।
पहचान उन सभी का मंच है जो जिंदगी को जीते नहीं जीने का निर्वाह करते है .वे उन लोगो में नहीं है जिन्हें जीवन मिला है या जीने का मकसद उनके साथ रहता है .बस जीने और घिसटने के बीच दिल वालो की कलम से और दिल से जो निकल जाता है वही कविता है .पहली कविता भी तों आंसू से निकली थी .आंसू अपने दर्द के हो या समाज के ,वे निकलेंगे तों कविता भी निकलेगी और वही दिलवालो की ;पहचान ;है
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