शनिवार, 5 मई 2012

एवरेस्ट पर्वत पर झंडा फहराना है

पांव है थके थके पर दूर बहुत जाना है 
पर चलने की उमंग है मन में उत्साह है 
चलना ही जीवन है रुक जाना अंत है                                       
चल रहा हूँ मै लेकिन रास्ता अनंत है ।
जीवन संघर्ष है, पहाड़ की चढ़ाई है 
अपने पुरसार्थ क़ी अपनी कमाई है
चलना है,रुकना नहीं चलते ही जाना है ।
रास्ते  में कांटे हो, जंगल हो, पहाड़ हो 
रास्ते में बाधा कोई सिंह की दहाड़ हो 
चलते ही जाना है चलते ही जाना है  ।
आते है तो रोते हुए और सब हंसते है 
रास्ते में कभी मौन,हंसना भी रोना भी 
जाते हुए मौन खुद, बाकी सब रोते है 
कौन परवाह करे हंसने की रोने की 
मंजिल को पाना है चलते ही जाना है ।
मंजिल नहीं मंजिलें है जैसे हो सीढियाँ 
हौसले बनाये रख कदम कदम चलना है 
चलते ही जाना है चलते ही जाना है ।
रास्ता दिखाया था बड़ों ने आगे कभी 
वो तो चले गए अपनी अनंत यात्रा पर 
अब आगे चलना है रास्ता दिखाना है 
पीछे है हमारे जो उन्हें रास्ता बताना है 
मंजिलें दिखाना उन्हें काँटों से बचाना है 
यही है कर्त्तव्य बस यही वो आयाम है 
अपनों को धीरे धीरे वाम पर पहुँचाना है 
चलते हमें जाना है चलते हमें जाना है ।
गिरे, उठे ,चल दिए, पार की खाइयाँ 
लडखडाये फिसले भी पार की पहाड़ियां 
काँटों के चुभने की कभी परवाह नहीं 
बहुत तेज गिरे पर निकली आह नहीं  
पैर हो जमीन पर अहंकार दूर रहे 
किसे परवाह  कौन कौन क्या कहे 
बस यही सत्य है , यही संकल्प है
सारे सोपानों को ,मंजिलों को पाना है 
एवरेस्ट पर्वत पर झंडा फहराना है 
चलते ही जाना है चलते ही जाना  है ।



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