कह देता हूँ किसी से कि जरा हाथ बढ़ाना
नासमझ मुझको अपाहिज ही मान लेते हैं ,
मान कर कमजोर मुझको वे उपदेश देते है
अज्ञानी मान कर मुझको पूरा ज्ञान देते है |
पहचान उन सभी का मंच है जो जिंदगी को जीते नहीं जीने का निर्वाह करते है .वे उन लोगो में नहीं है जिन्हें जीवन मिला है या जीने का मकसद उनके साथ रहता है .बस जीने और घिसटने के बीच दिल वालो की कलम से और दिल से जो निकल जाता है वही कविता है .पहली कविता भी तों आंसू से निकली थी .आंसू अपने दर्द के हो या समाज के ,वे निकलेंगे तों कविता भी निकलेगी और वही दिलवालो की ;पहचान ;है
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