शुक्रवार, 17 मार्च 2023

तुम सूरज हो ?


मेरी कविता 

तुम सूरज हो ? 

तुम सूरज हो किसके सूरज 
कैसे सूरज क्यों अकड़े हो 
मुझमें तुममे क्या अंतर हैं
तुम कहा खड़े हो कैसे बड़े हो 
मैं भी अंधकार में सो जाता हूं
तुम भी तो कही खो जाते हो 
सुबह निकलता मैं बिस्तर से 
तुम भी कूद कर आ जाते हो 
पूरब में तुम कहा छुपे 
पश्चिम से आकर 
कल शाम तुम लाल हुए 
पश्चिम में जाकर 
मैने सोचा जल गए तुम 
डूब गए हो किसी खोह में 
या फिर गुस्से में लाल हो गए 
किस बिछोह में 
दीपक ने तुमको कल ललकारा 
अहंकार था उसने उतारा 
बोला था तुमसे वो 
तुम जाओ जाओ
जहां कही भी चाहो 
तुम अब घूम के आओ 
अंधकार पर में चढ़ लूंगा 
उसकी ताकत से लड़ लूंगा 
क्या तब तुम कुछ शर्माए थे 
उसकी लाली तब तुमपर थी 
मैं तो दर्शक बस दोनो का 
दोनो से आनंद है मेरा 
रात में दीपक साथ में रहता 
तुम्हरे संग हो जाता सवेरा 
मैं तुमको ना पूजू तो फिर तुम क्या हो 
तुम साथ में नही रहो तो मैं क्या हूं 
हम दोनो की तकदीर है कैसी 
पश्चिम की तासीर है कैसी 
पश्चिम में जाकर तुम भी डूब रहे हो 
पश्चिम को अपना कर मैं भी डूब रहा हूं 
चलो बहस अब खत्म करे मैं क्या तुम क्या 
जब तक मेरा साथ दे सको साथ रहो तुम 
अर्घ मेरा स्वीकार करो मेरे रहो तुम 
तुम ना होगे तो जीवन भी तो ना होगा 
चांद सितारे जुगनू दीपक सब बच्चे तेरे 
तुम हो तो वो सब भी है साथी मेरे 
तुम जाते हो तब ही हमको नीद है आती 
तुम आते हो सारी दुनिया तब जग जाती 
आने जाने का ये फेरा ही जीवन है 
उगने डूबने का क्रम ही तो जीवन है 
अच्छा सूरज बहुत काम है मैं चलता हूं 
फिर मैं तुमसे बात करूंगा 
अपनी आंखे नही तरेरो
क्योंकि अब हम दोस्त हो गए
मैं अब तुमसे नही डरूंगा ।



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