बुधवार, 15 मार्च 2023

बहुत दिनो के बाद चांद से बात हुयी ।



बहुत दिनो के बाद चांद से बात हुयी ।

शाम ढली थी और थोडी सी रात हुयी 
बहुत दिनो के बाद चांद से बात हुयी ।
कुछ रूठा सा चाँद अकड के बैठ गया 
कितना निहारा करता था चन्दा को  मैं 
गाँव देहरी या शहर का का आंगन था 
पर जाने फिर क्या हुआ दोस्ती टूट गयी 
जीवन के संघर्ष या फिर टूटा मन था 
याद किसे आती है चांद सितारो की 
जब रोटी ही चांद दिखाई पडती हो 
और सितारे नमक मे पड़े  दिखते हो 
जब भूख पेट की ख़ुद से याचना करती हो 
बच्चो की फीस उन्हे अपमानित करती हो 
पत्नी की कोशिश फटी साड़ियाँ ढकने की 
पूरा दिन जब मुफ्त इलाज खा जाता हो 
जब धक्कों से अपने जीवन का नाता हो 
छत भी छीनने का खतरा सर पर लटका हो 
तो कौन देखता चांद तुम्हे और कब देखे 
तुमने भी क्या किया अपने इस प्रेमी का 
जो बड़े देवता बने हुये तुम फिरते हो 
नही शिकायत का हक तुमको बिल्कुल है 
कहा देखना था तुमको थे तुम याद कहा 
वो तो यूँ ही बस नजर उठ गयी ऊपर को 
कि बादल मे क्या चमक रहा है देखो तो 
आंख मिल गयी तुमसे तो तुम ऐंठ गये 
लेके किस्सा देखा देखी का बैठ गये 
जाओ जाओ हमको भी अब परवाह नही 
एक चांद उगा देंगे हम चाहे जहा कही 
अब तुम नही मेरे बच्चे है चांद मेरे
तुम भी हो पर मेरे बच्चो के बाद मेरे ।

कोई टिप्पणी नहीं :

एक टिप्पणी भेजें