क्या हम एक दिया उन घरों में जला सकते है
जहा अंधेरा है हमेशा से
और
रोशनी पहुंची ही नहीं आजतक ?
क्या हम उनका पेट भरने में मदद कर सकते है
जो बीनते है कूड़े से खाना जानवरो के साथ
मनुष्य होकर भी
जो चाटते है
हमारी फेंकी हुई पत्तल
हमारे जैसा और उसी की संतान होकर
जिसकी हम है ?
फिर जब कोई ऐसा न बचे
तो
पत्थरों और दीवारों पर खूब रोशनी करो
पत्थरों को खूब खिलाओ अगर वो खा सके ?
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