सोमवार, 29 अप्रैल 2019

दर्द है कि जाता ही नही

दर्द है
कि जाता ही नही
न मन का न तन का
न अपनी जलन का
न अपनी लगन का
न अपने कहन का
न उनके सुनन का
न उनके कहन का
न अपने सुनन का
न दिल की व्यथा का
न अपनी कथा का
न यादो का अपने
न वादो का अपने
इरादो का अपने
दवा भी नही है
दुवा भी नही है
ये किससे बताये
किसे हम सुनाये
आँसू छुपाये
या हिचकी दबाए
कटी जीभ अपनी
निकलता जो खू है
ये कैसे छुपाये
न आहो मे कोई
न चाहो मे कोई
निगाहो मे कोई
न राहो मे कोई
ये गम हम दबाए
कहा तक अब जाये
ये दर्द जो खू मे
कतरे कतरे लहू मे
चमड़ी के अंदर
औ चमड़ी के बाहर
ये जाता नही है ।

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