ऐसा क्यो होता है अक्सर
कुछ लोगो के साथ
कि
जिस जमीन पर आप
बुनियाद बनाना चाहते है
वही दलदल निकल आती है
और
धंस जाता है खुद का वजूद
जिस पेड़ को मजबूत समझ
छप्पर का आधार बनाना चाहते है
वही इतना कमजोर निकल जाता है
कि
तनिक सा बोझ पडते ही
लचक जाता है
और
सब कुछ जमीदोज हो जाता है
पहाडी पर चढ़ते वक्त
पहला ही पत्थर
कमजोर निकल जाता है
और
पहले ही कदम पर घायल कर
चढाई छोड़ने को मजबूर कर देता है ।
खैर
हिम्मत तब भी नही हारते लोग
और
जारी रखते है खोज
एक मजबूत ,पुख्ता जमीन की
पूरी तरह लम्बे समय तक
मजबूती से खड़े रहने वाले पेड़ की
और
पहाडी पर घायल होकर भी
अन्तिम चोटी तक पहुचने के
सही मार्ग की ।
पहचान उन सभी का मंच है जो जिंदगी को जीते नहीं जीने का निर्वाह करते है .वे उन लोगो में नहीं है जिन्हें जीवन मिला है या जीने का मकसद उनके साथ रहता है .बस जीने और घिसटने के बीच दिल वालो की कलम से और दिल से जो निकल जाता है वही कविता है .पहली कविता भी तों आंसू से निकली थी .आंसू अपने दर्द के हो या समाज के ,वे निकलेंगे तों कविता भी निकलेगी और वही दिलवालो की ;पहचान ;है
शनिवार, 6 अप्रैल 2019
ऐसा क्यो होता है अक्सर
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