मिटा दिए है वो तमाम नम्बर
जो नही उठे मेरी ज़रूरत में
या
यूँ ही जब हाल जानना चाहा
भुला दिए है तमाम वो नाम
जिन्हें मैं याद नही आया कब से
वो चेहरे भी धुंधले कर दिए मैंने
जिन्होंने फेर ली निगाहें मुझसे
हा
अब मैं भी जमाने जैसा हो गया हूँ ?
पहचान उन सभी का मंच है जो जिंदगी को जीते नहीं जीने का निर्वाह करते है .वे उन लोगो में नहीं है जिन्हें जीवन मिला है या जीने का मकसद उनके साथ रहता है .बस जीने और घिसटने के बीच दिल वालो की कलम से और दिल से जो निकल जाता है वही कविता है .पहली कविता भी तों आंसू से निकली थी .आंसू अपने दर्द के हो या समाज के ,वे निकलेंगे तों कविता भी निकलेगी और वही दिलवालो की ;पहचान ;है
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