आसमान कुछ कह रहा है
अपनी बोली अपनी भाषा में
ज़रा सुनिए इसका गीत
इसका संगीत
कितना मनभावन है
कितना शीतल है
इंतज़ार था इसी का
कितने दिन से
पृथ्वी को और हमको भी
कि
बादल झूम कर आए
खूब झूम कर गाए
हम सब झूम कर नहाए
और पृथ्वी भी तृप्त हो जाए ।
पहचान उन सभी का मंच है जो जिंदगी को जीते नहीं जीने का निर्वाह करते है .वे उन लोगो में नहीं है जिन्हें जीवन मिला है या जीने का मकसद उनके साथ रहता है .बस जीने और घिसटने के बीच दिल वालो की कलम से और दिल से जो निकल जाता है वही कविता है .पहली कविता भी तों आंसू से निकली थी .आंसू अपने दर्द के हो या समाज के ,वे निकलेंगे तों कविता भी निकलेगी और वही दिलवालो की ;पहचान ;है
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