शनिवार, 14 अगस्त 2010

फिर एक वर्ष बीत गया

फिर एक वर्ष बीत गया और आ गया गिनती का नया वर्ष.
चरित्र पतोन्मुख ,भविष्य पतोन्मुख .
बनावटी महफिले और धमाल सड़क से सितारों तक .
नाच ,कानफोडू शोर ,दारू की नदिया ,नशे का सुट्टा ,
और इसकी आड़ में छमाप्राप्त  सब कुछ जो लिख ना सके कलम .
कौन किसकी पत्नी ,कौन किसकी क्या और कौन किसका सनम
सब झूठे नशे और दिखावे में सराबोर ,कोई छी..भारतीय गवार ना कह दे .
शोर के साथ नए साल का स्वागत ,नाच चौराहे ,चौराहे पर
छोटे से बड़े लान तथा होटल में ,पार्टियाँ हजारो से लाखो तक की
बस बारह बजे ,बत्ती बुझे और शोर करके चिपक जाने के इंतजार के लिए
तथा बस इतना कहने के लिए की ये वर्ष शुभ हो
शुभ हो और लूट सके देश और समाज को करोडो में अरबो में
इस शुभ के लिए लोग नाच रहे है .
ये नाच रहे है क्योकि उनके पड़ोस में कल सीमा से एक लाश आई है.
कुछ नाच रहे हैं उनके लिए जो गला देने वाली बर्फ और जला देने वाले बालू की सीमा पर खड़े है .
कुछ शोर कर रहे है हमेशा साथ देने वाले दिल के मरीज पडोसी के लिए
वे नाच रहे है वर्षो के जिगरी दोस्त की आत्मा की शांति के लिए जो कल ही गुजरा है
कुछ नाच रहे है जो सबका पेट भरते भरते आत्महत्या कर रहे है
और उनके लिए भी जो सबका तन ढकते खुद नंगे ही रह गए .
ये सूरमा नाच रहे है की पड़ोस में डाका पड़ा तों ये चुप रह कर बच गए
इनके सामने जिस लड़की को हवस का शिकार बनाया गया ओ इनकी कुछ नही थी  .
इसलिए नाच रहे है .
वे नाच रहे है पानी पी कर मरने वालो के लिए ,वे दवा बिना मरने वालो के लिए
वे ,आतंकवाद ,गोधरा ,अक्छरधाम ,मुंबई ,कश्मीर ,अहमदाबाद
तमाम मौतों की ख़ुशी में नाच रहे ,क्योकि मरने वाले इनके कुछ नहीं थे .
इस बात का गर्व है और गर्व है  ससद पर हमले पर ,कारगिल पर
क्योकि वहा इनका कोई नहीं मरा .
ये बहा रहे है दारू ,नोच रहे है मॉस उनके लिए                                                                                                  
जो बाहर चिपके पेट और नंगे शरीर टुकुर टुकुर ताक रहे है की
गलती से कोई जूठा टुकड़ा उनके पास आ गिरे
चाहे फिर जंग हो उनके और सड़क के कुत्तो के बीच .
जी हां सौ करोड़ से अधिक वाले देश में ये कुछ लाख नाच रहे है और नचा रहे है इतनो को ,
छी ;ये नाच और गाना ,बहन, बेटी  तथा पत्नी को लोगो के बीच नचाना
और चिल्लाना की नया साल आ गया है,इतराना ,ओ बड़े ओ है ये बताना . 





















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