सोमवार, 18 अक्तूबर 2010

दीपो का त्यौहार आ गया, दीप जलेंगे

दीपो का त्यौहार आ गया ,
दीप  जलेंगे
कही मोम के,कुछ मिट्टी के ,
दीप जलेंगे ,सदा जले है ,
फिर जलने है,
दीपो का त्यौहार जो आया,
बालक बच्चे इंतजार में,
उनकी खातिर खुशिया लाया,
मिठाई ,खील बतासे खायेंगे वे,
दीप जलेंगे ,
बम फुलझड़िया खूब दगेंगी,
पर मिट्टी का दीपक कुछ उदास है,
हंस रही है चीन से आई ही सब चीजे,
जिसके लिए अफीम धर्म था,
उसी चीन से बन कर आये ,
सभी देवता है बाजार में,
भारत के दिए और और देवता,
बस बैठे है इंतजार में,
कोई तों ले लो,आखिर वे अपने है,
कुछ अपनों का पेट भरेगा
देखो वो गरीब का बच्चा,
टुकुर टुकुर ताक रहा है सब चीजो को,
उसका पिता हिसाब लगाकर ,
खील,बतासे,एक फुलझड़ी ले लेता है
ये कह कर की हम चालाक है 
औरो को खर्चा करने दो
हम मुफ्त में मजे करेंगे,
सुबह सुबह जल्दी जग उसका बेटा बीनेगा,
बची मोमबत्तियां और पटाखे,
अगले दिन वो उनको फोड़ेगा,
जहा काम करती उसकी माँ,
वहा से आई आज मिठाई,
मन रही इस घर में आज दीवाली,
दीवाली आई और ख़त्म हो गयी,
अब लगता है की कल क्या बदला था ,
हम दुनिया कि बुराइयों से,
लड़ने की कसम खाये तों कैसा हो,
तब दीवाली मनाये तों कैसा हो,
दीवाली मनाये,सीमा से कोई लाश नही आई,
इस साल किसी ने अपनी बहू नही जलाई,
जब कोई रात न होगी काली, तब होगी असली दीवाली |

कोई टिप्पणी नहीं :

एक टिप्पणी भेजें